जेठाभाई रबारी कहिथें, “बिनती हवय के ओकर तीर झन जावव. वो डेरा के भाग सकत हवंय. फिर ये अतका बड़े इलाका मं वो मन ला खोजे ह मोर बर भारी कठिन बूता हो जाही – वो मन ला अकेल्ला अपन आप किंदरत रहन देव,”

‘वोमन’ अऊ ‘तऊन’ बेशकीमती ऊंट आंय जेकर बारे मं देहाती खानाबदोश गोठियावत हवंय. अऊ चारा खोजत येती-वोती तइरत हवंय.

ऊंट, वो घलो तइरेइय्या, सिरतोन?

हव, सही आय. जेठाभाई जऊन ‘बड़े इलाका’ के जिकर करत हवंय, वो ह समुद्री राष्ट्रीय उद्यान अऊ अभयारण्य (एमएनपी एंड एस) आय, जऊन हा कच्छ के खाड़ी के दक्खिन तट मं हवय. अऊ इहाँ, घुमंतू चरवाहा मन के ऊंट गोहड़ी मन दलदली मं होवइय्या मैंग्रोव (एविसेनिया मरीना) कांदी ला खोजत चरवाहा मन एक टापू ले दूसर टापू तइरत रहिथें – जऊन ह वो मन के चारा सेती जरूरी आय.

कारू मेरु जाट कहिथें, "गर ये नस्ल मन लंबा बखत तक ले मैंग्रोव नई खायं त बीमार पर सकथें, दुब्बर हो सकथें अऊ मर घलो सकत हवंय. त समुद्री पार्क के भीतरी, हमर ऊँट गोहड़ी मन मैंग्रोव कांदी खोजत घूमत रहिथें.”

Jethabhai Rabari looking for his herd of camels at the Marine National Park area in Khambaliya taluka of Devbhumi Dwarka district
PHOTO • Ritayan Mukherjee

देवभूमि द्वारका जिला के खंबालिया तालुका मं समुद्री राष्ट्रीय उद्यान इलाका मं ऊंट के अपन गोहड़ी ऊपर नजर धरे जेठाभाई रबारी

एमएनपीएंडएस मं दू कोरी दू टापू हवंय जऊन मेर ले तीन कम दू कोरी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान मं आथें अऊ बाकी 5 अभयारण्य के इलाका मं आथें. जम्मो इलाका जामनगर, देवभूमि द्वारका (2013 मं जामनगर ले काट के बने हवय) अऊ सौराष्ट्र गुजरात के इलाका मं मोरबी जिला तक ले बगरे हवय.

मूसा जाट कहिथें, “हम सब इहाँ कतको पीढ़ी ले रहत हवन.” कारू मेरु जइसने, वो ह मरीन नेशनल पार्क मं रहेइय्या फकीरानी जाट कबीला ले हवंय. एमएनपी एंड एस के भीतरी रहेइय्या ओकर जइसने एक अऊ कबीला हवय – भोपा रबारी (जऊन ला रेबारी घलो कहे जाथे) कबीला, जऊन ह जेठाभाई के आय. दूनो कबीला पारंपरिक चरवाहा आंय, जऊन मन ला इहाँ ‘मालधारी’ कहे जाथे. गुजरती भाखा मं ‘माल’ के मतलब मवेसी ले हवय, अऊ ‘धारी’ के मतलब पोसेइय्या धन मालिक. जम्मो गुजरात मं, मालधारी गाय, भैंस, ऊंट, घोड़ा, मेढ़ा अऊ छेरी पोसथें.

मंय ये दूनो कबीला के लोगन मन ले भेंट करत हवंव, जऊन मन समुद्री पार्क के इलाका के तिर-तखार के गाँव मन मं रहिथें, जिहां करीबन 1,200 मनखे हवंय.

मूसा जाट कहिथें, ''हम बर ये जमीन अनमोल आय. जामनगर के राजा ह हमन ला कतको सदी पहिली इहाँ आके बसे के नेवता देय रहिस. 1982 मं ये जगा ला समुद्री राष्ट्रीय उद्यान घोसित करे जाय के बहुत पहिली.”

Jethabhai Rabari driving his herd out to graze in the creeks of the Gulf of Kachchh
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जेठाभाई रबारी अपन गोहड़ी ला कच्छ के खाड़ी के खाड़ी मन मं चराय सेती निकालत

भुज मं पशुचारण केंद्र चलेइय्या एनजीओ सहजीवन के रितुजा मित्रा ह ये दावा के समर्थन करथें. अइसने कहे जाथे के ये इलाका के एक झिन राजकुमार दूनो कबीला के मंडली ला अपन नवा बनाय राज नवानगर मं ले गे रहिस, जऊन ला बाद मं ‘जामनगर’ के नांव ले जाने गीस. अऊ तब ले, ये चरवाहा मन के वंशज ये भूईंय्या मं रहत हवंय.

सहजजीवन मं वन अधिकार अधिनियम के राज्य समन्वयक रितुजा कहिथें, "ये इलाका के कुछेक गांव मन के नांव घलो बताथें के वो लंबा बखत ले हवंय. अइसनेच एक ठन गांव हवय ऊँटबेट संपार – जऊन ला गुजराती भाखा मं मोटा-मोटी ‘ऊँट के टापू’ कहे जाथे.”

लंबा बखत ले ऊंट मन के इहाँ होय सेती सयदे वो मन मं तइरे के आदत घलो परगे. जइसने के ससेक्स मं इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के शोधकर्ता लीला मेहता कहिथें: “ऊंट पारंपरिक रूप ले दलदली इलाका के मैंग्रोव कांदी संगे-संग रहत होय ले तइरे मं काबिल काबर नई होहीं?”

रितुजा हमन ला बताथें के एमएनपी एंड एस मं करीबन 1,148 ऊंट चर सकथें. अऊ ये 6 कम चार कोरी मालधारी परिवार के मालिकाना हक मं हवंय.

जामनगर ला 1540 ई, मं तब के नवानगर राज के राजधानी के रूप मं बसाय गे रहिस. मालधारी पहिली पईंत 17 वीं सदी मं इहाँ आय रहिन अऊ तब ले इहींचे हवंय.

The Kharai camels swim to the mangroves as the water rises with high tide
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जब पानी के लहर बढ़थे त खराई ऊंट तइरत दलदली वाले इलाका मं चले जाथें

ये समझे ह मुस्किल नई ये के वो मन “ये भूईंय्या के अतके कदर काबर करथें.” खास करके गर वो ह देहाती खानाबदोश हवंय जऊन मन इहाँ के अचरज ले भरे समुंदर के विविधता ला समझथें अऊ ओकर संग रहिथें. पार्क मं मूंगा के दिवार, मैंग्रोव जंगल, रतीला समुंदर तट, दलदली इलाका. खाड़ी, चट्टानी तटरेखा, समुद्री घास के पट्टी अऊ बनेच कुछु सामिल हवंय.

इंडो-जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम, जीआईजेड डहर ले छपे 2016 एक शोध पत्र मं ये पर्यावरण इलाका (ईकोरियोजन) के खासियत ला बढ़िया तरीका ले लिखे गे हवय. ये इलाका मं काई के 100 ले जियादा प्रजाति के, स्पंज (पानी सोख जिनिस) के 70 प्रजाति के अऊ 70 ले जियादा किसिम के ठोस अऊ केवंर मूंगा के घर हवय. ये मन ला छोड़ के 200 किसिम के मछरी, 27 किसिम के चिंगरी, 30 किसिम के केंकरा अऊ चार किसिम के समुद्री कांदी हवंय.

फेर बात अतके मं नई सिरावय. दस्तावेज मन मं लिखाय रिकार्ड मं; तुमन ला इहाँ घलो समुद्री कछुवा अऊ समुद्री स्तनधारी जीव के तीन प्रजाति, दू सो ले जियादा गोंघा, दस कम पांच कोरी ले जियादा किसिम के समकोल, 5 कम तीन कोरी किसिम के घोंघी अऊ दू कम चार किसिम के चिरई मिल सकथे.

येती, फकीरानी जाट अऊ रबारी पीढ़ी दर पीढ़ी खराई ऊंट मन ला चरावत हवंय. गुजराती मं ‘खराई’ के मतलब ‘नूनचुर’ होथे. खराई ऊंट एक खास नसल आय जऊन ह एक अइसने पर्यावरण इलाका के अभ्यस्त हो गे हवय तऊन ह वोकर मन ले बनेच अलग हवय जऊन ला हमन आमतऊर ले ऊंट मन ले जोड़थन. ओकर चारा मं किसिम-किसम के पऊधा, झाड़ी अऊ बनेच महत्तम वाला मैंग्रोव सामिल हवय, जइसने के कारू मेरु जाट हमन ला बताथें.

तइरेइय्या ये अकेला कूबर वाला मवेसी अपन चरवाहा मन के गोहड़ी मं रहिथें, जऊन मं मालधारी मन धन ओकर मालिक के कुनबा के लोगन मन घलो सामिल रथें. आम तऊर ले दू मालधारी मरद मन ऊंट के संग तइरत रथें. कभू-कभू, वो मन ले एक चरवाहा खाय अऊ पिये के पानी सेती अऊ गांव लहूंटे सेती घलो नानकन डोंगा बऊरथे. दूसर चरवाहा जानवर मन के संग टापू मं रहिथे, जिहां वो ह ऊंट के दूध पी के अपन कमती खाना ला पूरा करथे, दूध ह ये समाज के खाय के जरूरी हिस्सा आय.

Jethabhai Rabari (left) and Dudabhai Rabari making tea after grazing their camels in Khambaliya
PHOTO • Ritayan Mukherjee

खंबालिया मं ऊंट चराय के बाद चाहा बनावत जेठाभाई रबारी (डेरी) अऊ दुदाभाई रबारी

मालधारी मन के सेती फेर जिनिस मन जल्दी ले बदलत हवंय. जिनगी अऊ काम बदतर होवत जावत हवय. जेठाभाई रबारी कहिथें, “अपन ला अऊ अपन बेवसाय ला बना के रखे ला मुस्किल होवत जावत हवय. ये इलाका के जियादा ले जियादा हिस्सा वन विभाग के काबू मं आय ले हमर चरी-चरागान कमती हो गे हवय. पहिली, मैंग्रोव तक हमर पहुंच बे-रोक टोक असान रहत रहिस. 1995 ले, चरई ऊपर रोक लगा दे गे हवय. फेर नून के खेत हवंय जऊन ले हमन हलाकान रहिथन. येकर छोड़, पलायन के सायदे कऊनो गुंजाइश बांचे हवय. ये सबले बढ़के – अब हमन ला ऊंट मन ला भारी चराय कहिके जुरमाना वसूले जाथे. काय ये हो सकत हवय?

ये इलाका मं लंबा बखत तक ले एफआरए ऊपर काम करेईय्या रितुजा मित्रा चरवाहा मन के दावा के समर्थन करथें. “गर कऊनो ऊंट मन के चरे के तरीका ला देखव, त वो मन पऊधा ला ऊपर ले काटथें, जऊन ह वास्तव मं वो ला पवंरे मं मदद करथे. समुद्री राष्ट्रीय उद्यान के टापू हमेसा ले नन्दावत खराई ऊंट मन के मनपसन्द जगा रहे हवंय, जिहां वो मन दलदली के कांदी अऊ दीगर चारा भरपूर मिलथे.

वन विभाग कुछु अऊ मानथे. येकर ऊपर कुछू लेखक मन के लिखाय अऊ कुछु शिक्षाविद मन के डहर ले घलो दावा करे गे हवय के ये साबित करे सेती भरपूर सबूत हवंय के ऊंट के चरे ले ‘अति चरई’ होथे.

जइसने के 2016 के शोध पत्र बताथे, दलदली कांदी मन के नुकसान के कतको कारन हवंय. ये ओकर नुकसान ला औद्योगीकरण अऊ दीगर कारन ले होय नतीजा ले जोड़थें. ये ह कहूं घलो मालधारी अऊ ओंकर मन के ऊँट ऊपर नुकसान के दोस नई देवय.

ये कांदी मन के कमतियाय के दीगर कारन जियादा महत्तम हवंय.

खराई ऊंट – तइरेइय्या ये अकेल्ला कूबर वाला मवेसी अपन चरवाहा मन के गोहड़ी मं रहिथें, जऊन मं मालधारी मन धन ओकर मालिक के कुनबा के लोगन मन घलो सामिल रथें

देखव वीडियो: गुजरात के भूखाय तैराक ऊंट

जामनगर अऊ येकर तीर-तखार के इलाका मन मं 1980 के दसक ले बनेच अकन कल-कारखाना खुल गे हवंय. रितुजा बताथें, “ये इलाका मन मं नून कारखाना, ऑयल जेटी अऊ दीगर कल-कारखाना के असर हवय. वो मन ला अपन बेवसाय मं सुभीता सेती जमीन के उपयोग करे मं दिक्कत के सामना करे ला परथे. फेर जब चरवाहा मन के बेवसाय चलाय के बात आथे त विभाग ह कड़ा हो जाथे. जऊन ह संजोग ले, संविधान के अनुच्छेद 19 (जी) के उलट हवय, जऊन ह ‘कऊनो घलो काम करे, धन कऊनो बेवसाय, बेपार धन कारोबार ला करे’ के हक के गारंटी देथे.”

अब जब समुद्री पार्क के भीतरी चरवाहा मन ला चराय मं रोक हवय, अइसने मं ऊंट चरवाहा मन ला अक्सर वन विभाग के अतियाचार के सामना करे ला परथे. आदम जाट तऊन मालधारी मं सामिल हवंय, जऊन ला ये भोगे ला परे हवय. वो ह कहिथे, कुच्छेक बछर पहिली, मोला ऊंट चरे सेती वन अफसर मन हिरासत मं ले लेय रहिन अऊ 20,000 रूपिया के जुरमाना लगाइन. इहाँ के दीगर मवेसी पालक मन घलो अपन संग होय  अइसनेच बात ला बताय रहिन.

रितुजा मित्रा कहिथें, "केंद्र सरकार के 2006 के कानून अभू घलो कऊनो काम के नई ये.” वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत, धारा 3(1)(डी) खानाबदोश धन चरवाहा समाज के बऊरे अऊ चराई (दूनो बसे धन अवेइय्या) अऊ पारंपरिक मौसमी संसाधन मं पहुंच के समाजिक हक देथे.

रितुजा कागज मन मं दबे तउन वन अधिकार अधिनियम के बेअसर होय के बात करत कहिथें, “येकर बाद घलो, ये मालधारी मन ला बेरा के बेरा वन रक्षक मन डहर ले चराय सेती डांड देय जाथे, अऊ धरे जाय के बाद अक्सर 20,000 ले 60,000 रूपिया पटाय ला परथे.”

पीढ़ी दर पीढ़ी बासिंदा अऊ ये जटिल इलाका ला दीगर कऊनो ले बढ़िया समझ बूझ रखेइय्या चरवाहा मन ला सामिल करे बगेर मैंग्रोव खोल बढ़ाय के कोसिस  बेकार साबित होय हवय. जगभाई रबारी कहिथें, हमन ये जमीन ला समझथन, हमन समझथन के पर्यावरन कइसने काम करथे, अऊ हमन सरकारी नीति के खिलाफ घलो नई अन जऊन ला वो मन मैंग्रोव के प्रजाति के बचाय सेती बनाथें. “हमन सिरिफ इहीच पूछथन: बिनती हवय के कऊनो घलो नीति बनाय ले पहिली हमन ला घलो सुन लेवव. नई त ये इलाका के करीबन 1,200 बासिंदा अऊ तऊन सब्बो ऊंट के जिनगी घलो दांव मं लाग जाही.”

The thick mangrove cover of the Marine National Park and Sanctuary located in northwest Saurashtra region of Gujarat
PHOTO • Ritayan Mukherjee

गुजरात के उत्तर-पश्चिम सौराष्ट्र इलाका मं बसे मरीन नेशनल पार्क अऊ अभयारण्य के घना मैंग्रोव खोल

Bhikabhai Rabari accompanies his grazing camels by swimming alongside them
PHOTO • Ritayan Mukherjee

भीकाभाई रबारी अपन चरत ऊंट के संग तइरत ओकर संग जाथें

Aadam Jat holding his homemade polystyrene float, which helps him when swims with his animals
PHOTO • Ritayan Mukherjee

आदम जाट अपन घर मं थर्मोकोल ले बनाय डोंगी  के संग , जऊन ह ओंकर जानवर मन के संग तइरे मं ओकर मदद मिलथे

Magnificent Kharai camels about to get into the water to swim to the bets (mangrove islands)
PHOTO • Ritayan Mukherjee

शानदार खराई ऊंट टापू मं तइर के जाय सेती पानी मं उतरत

Kharai camels can swim a distance of 3 to 5 kilometres in a day
PHOTO • Ritayan Mukherjee

खराई ऊंट दिन भर मं एक ले दू कोस तइर सकथे


The swimming camels float through the creeks in the Marine National Park in search of food
PHOTO • Ritayan Mukherjee

समुद्री राष्ट्रीय उद्यान मं खाड़ी के तीर मं तइरत ऊंट चारा खोजत

Hari, Jethabhai Rabari's son, swimming near his camels. ‘I love to swim with the camels. It’s so much fun!’
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जेठाभाई रबारी के बेटा हरि अपन ऊंट मन के तीर तइरत रहिस. 'मोला ऊंट मन के संग तइरे सुहाथे. ये मं  बनेच मजा आथे'

The camels’ movement in the area and their feeding on plants help the mangroves regenerate
PHOTO • Ritayan Mukherjee

इलाका मं ऊंट मन के आवाजाही अऊ चरई ले मैंग्रोव कांदी ला पंवरे मं मदद मिलथे

A full-grown Kharai camel looking for mangrove plants
PHOTO • Ritayan Mukherjee

भरपूर बाढ़े खराई ऊंट मैंग्रोव कांदी ला खोजत

Aadam Jat (left) and a fellow herder getting on the boat to return to their village after the camels have left the shore with another herder
PHOTO • Ritayan Mukherjee

आदम जाट (डेरी) अऊ संगवारी चरवाहा ऊँट मन के दूसर चरवाहा के संग पार मं अपन गाँव लहूँटे सेती डोंगा मं चढ़त

Aadam Jat, from the Fakirani Jat community, owns 70 Kharai camels and lives on the periphery of the Marine National Park in Jamnagar district
PHOTO • Ritayan Mukherjee

फकीरानी जाट समाज के आदम जाट 70 खराई ऊंट के मालिक आंय अऊ जामनगर जिला के मरीन नेशनल पार्क के सरहद के गाँव मं रहिथें

Aadam Jat in front of his house in Balambha village of Jodiya taluka. ‘We have been here for generations. Why must we face harassment for camel grazing?’
PHOTO • Ritayan Mukherjee

आदम जाट जोदिया तालुका के बलंभा गांव मं अपन घर के आगू. ' हमन इहाँ कतको पीढी ले हवन. ऊंट चराय के बदला मं हमन काबर अतियाचार भोगबो ?'


Jethabhai's family used to own 300 Kharai camels once. ‘Many died; I am left with only 40 now. This occupation is not sustainable anymore’
PHOTO • Ritayan Mukherjee

जेठाभाई के परिवार करा कभू  300 खराई ऊंट रहिस 'कतको मर गे; मोर तीर अब सिरिफ दू कोरी बांचे हवंय. ये पेसा अब मुनाफा वाला नहीं ये'

Dudabhai Rabari (left) and Jethabhai Rabari in conversation. ‘We both are in trouble because of the rules imposed by the Marine National Park. But we are trying to survive through it,’ says Duda Rabari
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बतियावत दुदाभाई रबारी (डेरी) अऊ जेठाभाई रबारी. दूदा रबारी कहिथें, ' मरीन नेशनल पार्क के बनाय नियम मन के सेती हमन दूनो मुस्किल मं हवन. फेर हमन येकर बाद घलो कइसने करके गुजारा करत हवन

As the low tide settles in the Gulf of Kachchh, Jethabhai gets ready to head back home
PHOTO • Ritayan Mukherjee

लहर के ठंडा परत जेठाभाई घर लहूंटे बर तियार हो जाथें

Jagabhai Rabari and his wife Jiviben Khambhala own 60 camels in Beh village of Khambaliya taluka, Devbhumi Dwarka district. ‘My livelihood depends on them. If they are happy and healthy, so am I,’ Jagabhai says
PHOTO • Ritayan Mukherjee

देवभूमि द्वारका जिला के खंबालिया तालुका के बेह गांव मं जगभाई रबारी अऊ ओंकर घरवाली जीवीबेन खंभाला करा  तीन कोरी ऊंट हवंय. जगभाई कहिथें, ' मोर जीविका ये मन के उपर आसरित रहिथे, गर वो मन खुश अऊ तन्दुरुस्त हवंय, त मंय घलो'


A maldhari child holds up a smartphone to take photos; the back is decorated with his doodles
PHOTO • Ritayan Mukherjee

एक मालधारी लइका फोटू खींचे सेती स्मार्टफोन रखे हवय ; खोल ला वो ह चिन्हा दे के सजाय हवय

A temple in Beh village. The deity is worshipped by Bhopa Rabaris, who believe she looks after the camels and their herders
PHOTO • Ritayan Mukherjee

बेह गांव मं एक ठन मंदिर. देवता के पूजा भोपा राबारी करथें , जऊन ह मानथें के वो ह ऊंट अऊ ओकर चरवाहा मनके रखवाली करथें

There are about 1,180 camels that graze within the Marine National Park and Sanctuary
PHOTO • Ritayan Mukherjee

समुद्री राष्ट्रीय उद्यान अऊ अभयारण्य के भीतरी करीबन 1,180 ऊंट चरत हवंय

लेखक ह, सहजीवन के ऊंट ले जुरे कार्यक्रम के पूर्व समन्वयक महेंद्र भनानी ला ये कहिनी के रिपोर्टिंग बखत मदद करे सेती अभार जतावत हवय.

रितायन मुखर्जी  देहाती अऊ घूमंतू समाज मं के ऊपर सेंटर फॉर पेस्टरलिज्म ले एक स्वतंत्र यात्रा अनुदान ले रिपोर्ट करथें. सेंटर ह ये रिपोर्ताज की सामग्री ऊपर कऊनो संपादकीय नियंत्रण नई रखे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Photos and Text : Ritayan Mukherjee

Ritayan Mukherjee is a Kolkata-based photographer and a PARI Senior Fellow. He is working on a long-term project that documents the lives of pastoral and nomadic communities in India.

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Video : Urja

Urja is Senior Assistant Editor - Video at the People’s Archive of Rural India. A documentary filmmaker, she is interested in covering crafts, livelihoods and the environment. Urja also works with PARI's social media team.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Photo Editor : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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