कोल्हापुर जिला के राजाराम शक्कर कारखाना मं फरवरी के गरम अऊ सुन्ना मंझनिया आय. कारखाना के अहाता मं सैकड़ों खोप्या (कुसियार मजूर मन के कुरिया) बनेच अकन ह खाली परे हें. इहाँ ले घंटा भर रेंगे के दूरिहा मं वडनगे गांव के तीर प्रवासी मजूर कुसियार बोंगत हवंय.

दूरिहा मं कुछेक बरतन के अवाज येकर आरो देवत हवय के कुछेक मजूर घर मं हो सकत हें. अवाज ला सुनके हमन 12 बछर के स्वाति महरनोर डहर चले जाथन जऊन ह घर के मन के सेती रतिहा मं खाय के रांधे के तियारी करत हवय. पिंयर अऊ थके चेहरा के संग वोला हमन अपन घर के कुरिया के आगू मं अकेल्ला बइठे  देखथन. ओकर चरों डहर रांधे के बरतन परे हवंय.

“मंय बिहनिया 3 बजे ले जगे हवंव,” उबासी ला दबावत वो ह कहिथें,

महाराष्ट्र के बावड़ा तालुका मं कुसियार कटई मं मदद करे सेती नान कन नोनी अपन दाई-ददा, छोटे भाई अऊ बबा के संग एक ठन बइलागाड़ी मं आज बिहनिया ले निकरिस. पांच झिन के परिवार ला दिन भर मं 25 मोली (बंडल) कटई के पइसा मिले हवय, अऊ सब्बो येला पूरा करे सेती अपन हाथ बटावत हवंय. बीते रात के रांधे भाखरी अऊ भंटा के साग ला वो मन के मंझनिया खाय सेती जोर दे रहिस.

सिरिफ स्वाती ह दू कोस दूरिहा रेंगत मंझनिया 1 बजे कारखाना मं बने अपन कुरिया मं लहूंटे हवय. स्वाति कहिथे, “बबा ह मोला छोड़े के बाद लहूंट गे.” वो ह घर के बाकि लोगन मन के सेती रात मं खाय के रांधे सेती दूसर मन ले पहिली घर आय हवय, जऊन मन 15 घंटा ले जियादा कुसियार काटे के बाद भूखाय अऊ थके-हारे लहूंटहीं. स्वाति कहिथे, “हमन (परिवार) बिहनिया ले सिरिफ एक कप चाहा पिये हवन.”

नवंबर 2022 ले, जब ले ओकर घर के मन बीड जिला के सकुंदवाड़ी गांव ले कोल्हापुर जिला मं आय रहिन, तब ले बीते पांच महिना ले खेत अऊ अपन कुरिया मं आय जाय, कुसियार काटे अऊ रांधे स्वाति के रोज के काम बं गे हे. वो मन कारखाना के अहाता मं बने कुरिया मं रहिथें. ऑक्सफैम, ह्यूमन कॉस्ट ऑफ शुगर के 2020 के एक ठन रिपोर्ट मं कहे गे हवय के महाराष्ट्र मं बहिर ले आय मजूर मं अक्सर तिरपाल वाले कुरिया मं रहिथें. बनेच अकन बने ये कुरिया के रहेइय्या मन के सेती अक्सर पानी, बिजली धन पखाना नई होवय.

Khopyas (thatched huts) of migrant sugarcane workers of Rajaram Sugar Factory in Kolhapur district
PHOTO • Jyoti Shinoli

कोल्हापुर जिला के राजाराम शक्कर कारखाना मं बहिर ले आय मजूर मन के खोप्या (खदर के कुरिया)

स्वाति कहिथे, “मोला कुसियार काटे नई भाय. मोला अपन गाँव मं रहे नीक लागथे काबर मंय उहाँ स्कूल जाथों.” वो ह पटोदा तालुका के सकुंदवाड़ी गांव के जिला परिषद मध्य विद्यालय मं कच्छा सातवीं मं पढ़थे. ओकर छोटे भाई कृष्णा उहिच स्कूल मं तीसरी कच्छा मं पढ़थे.

स्वाति के दाई-ददा अऊ बबा के जइसने, करीबन 500 प्रवासी मजूर कुसियार कटई के सीजन मं राजाराम शक्कर कारखाना मं ठेका मं बूता करथें. संग मं वो मं के नान-नान लइका मन हवंय. स्वाति कहिथे, “मार्च 2022 मं हमन सांगली मं रहेन.” वो अऊ कृष्णा दूनो बछर भर मं करीबन पांच महिना स्कूल ले दूरिहा मं रहिथें.

“बबा हरेक मार्च मं हमन ला अपन गाँव ले के जाथें जेकर ले हमन परिच्छा दे सकन. हमन अपन दाई-ददा के मदद करे सेती जल्देच लहूंट के आ जाथन,” स्वाति बताथें के कइसने वो अऊ ओकर भाई सरकारी स्कूल मं नांव लिखाय रहे के बेवस्था करथें.

नवंबर ले मार्च तक स्कूल मं गैरहाजिर रहे सेती आखिरी परिच्छा पास करे मुस्किल हो जाथे. स्वाति कहिथे, “हमन ला मराठी अऊ इतिहास जइसने बिसय मं बं जाथे, फेर गनित ला समझे मुस्किल आय. घर लहूंटे के बाद ओकर संगी सहेली मन मदद करे के कोसिस करथें फेर क्लास छूटे सेती नई बनय.”

स्वाति कहिथे, “काय करे जाय? मोर दाई ददा ले बूता काम मं मदद के जरूरत हवय.”

स्वाति के 35 बछर के दाई वर्षा अऊ 45 बछर के ददा तऊन महिना मं बहिर नई जावंय जब वो मन ला सकुंदवाड़ी के तीर-तखार मं खेती-किसानी के बूता मिल जाथे, वर्षा कहिथें, “बरसात के सीजन मं कपनी (कटई) तक, हमन ला हफ्ता मं चार पांच दिन गाँव मं काम-बूता मिल जाथे.”

ये परिवार धनगर समाज ले हवय, जऊन ला महाराष्ट्र मं चरवाहा जनजाति के रूप मं सूचीबद्ध करे गे हवय. ये जोड़ा रोजी मं 350 रूपिया कमाथे. 150 रूपिया वर्षा के अऊ भाऊसाहेब के 200 रूपिया. जब गाँव मं काम बूता सिरा जाथे त वो मन कुसियार कटई के बूता सेती निकर परथें.

Sugarcane workers transporting harvested sugarcane in a bullock cart
PHOTO • Jyoti Shinoli

कुसियार मजूर बइलागाड़ी मं कुसियार ढोवत

*****

“6 ले 14 बछर उमर के सब्बो लइका मन के सेती नि: शुल्क अऊ अनिवार्य शिक्षा,” लइका मन के नि: शुल्क अऊ अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के तहत जरूरी आय. फेर, स्वाति अऊ कृष्णा जइसने, करीबन 1.3 लाख लइका (6 ले 14 बछर उमर के) अपन प्रवासी कुसियार मजूर दाई-ददा के संग रहे सेती स्कूली शिक्षा हासिल करे नई सकंय.

स्कूल छोड़ेइय्या लइका मन के आंकड़ा ला कम करे के कोसिस मं महाराष्ट्र सरकार ह ‘शिक्षा गारंटी कार्ड’ (ईजीसी) लाइस. ईजीसी 2015 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 मं पारित एक ठन प्रस्ताव ऊपर रहिस. कार्ड के उद्देश्य ये तय करे ला हवय के वो मं बिना कऊनो बाधा के अपन नवा जगा मं स्कूली पढ़ई कर सकथें. ये मं लइका के सब्बो शैक्षणिक जानकारी सामिल हवय अऊ ओकर गाँव के स्कूल के गुरूजी मन ले जारी करे जाथें.

बीड जिला के एक झिन समाजिक कार्यकर्ता अशोक तांगड़े बताथें, “लइका मन येला अपन संग तऊन जिला मं कार्ड ला ले जाय ला होही जिहां वो मं जावत हवंय.”  नवा स्कूल के अफसर मन करा ये कार्ड ला देखाय ला परही. वो ह कहिथे, “येकर ले दाई-ददा ला नवा भर्ती के जरूरत नई परे अऊ लइका ह उहिच क्लास मं पढ़ई कर सकथे.”

वइसे, असलियत ये आय के “आज तक ले एको घलो लइका ला ईजीसी कार्ड जारी करे नई गे हवय,” अशोक कहिथें. येला तऊन स्कूल डहर ले दे जाही जिहां लइका के नांव लिखाय हवय अऊ कुछेक बखत सेती बहिर जावत होय.

महीनों तक ले स्कूल नई जवेइय्या स्वाति कहिथे, “जिला परिषद मिडिल स्कूल के हमर कऊनो घलो गुरूजी मोला धन मोर कऊनो संगी-सहेली ला अइसने कऊनो कार्ड जरी नई करे हवय.”

बात ये आय के, इहाँ के जिला परिषद मिडिल स्कूल शक्कर कारखाना ले कोस भर दूरिहा मं हवय, फेर हाथ मं कार्ड नई होय सेती स्वाति अऊ कृष्णा इहाँ जाके पढ़े नई सकंय.

कुसियार कटई सेती बहिर जाय मजूर मन के 1.3 लाख लइका जब अपन दाई ददा संग जाथें, तब आरटीई 2009 सरकार के आडर लागू होय के बाद घलो वो मन अपन पढ़ई-लिखई के हक ले बांच जाथें

देखव वीडियो: प्रवासी मजूर लइका मन बर सपना बनगे पढ़ई-लिखई

वइसे पुणे मं प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के एक झिन अफसर जोर देवत कहिथें, “ योजना बढ़िया ढंग ले चलत हवय. स्कूल के अफसर मन बहिर जवेइय्या लइका मन ला कार्ड देथें.” फेर जब ओकर ले अब तक ले लइका मन ला जारी कार्ड के कुल आंकड़ा बताय ला कहे गीस, त वो ह कहिस, “ये ह सरलग चलेइय्या सर्वे आय; हमन ईजीसी आंकड़ा संकेलत हवन, ये बखत येकर काम चलत हवय.”

*****

अर्जुन राजपूत कहिथे, “मोला इहाँ रहे बिल्कुले नई भाये.” 14 बछर के ये लइका अपन परिवार के संग रहिथे जऊन ह कोल्हापुर जिला के जाधववाड़ी इलाका मं दू एकड़ के ईंटा भठ्ठा मं बूता करथे.

सात झिन के ओकर परिवार औरंगाबाद जिला के वडगांव ले आके कोल्हापुर-बेंगलुरु हाईवे के तीर ये भठ्ठा मं बूता करे आय हवय. भारी चहल-पहल वाले ये भठ्ठा मं हरेक दिन 25,000 ईंटा बनथे. अर्जुन के परिवार तऊन करीबन 10-23 मिलियन (1 ले 2.3 करोड़) लोगन मन ले हवंय जेन मन ईंटा भठ्ठा मं बूता करथें. इहां के बूता के माहौल के नजर ले सबले  बिन सुरच्छा के बूता ले एक ठन आय. भारी तापमान मं हाड़तोड़ मिहनत के बूता आय. रोजी घलो बहुते कम होय सेती ईंटा भठ्ठा के बूता काम मजूर मन के सबले आखिरी ठिकाना माने जाथे.

अपन दाई-ददा के संग अर्जुन ला नवंबर ले मई तक स्कूल छोड़े परिस. अर्जुन कहिथे, “मंय अपन गाँव के जिला परिषद स्कूल मं कक्षा आठवीं मं पढ़थों.” बोले बखत ओकर पाछू जेसीबी मशीन ले धूर्रा, बादल जइसने उड़ावत रहिस.

Left: Arjun, with his mother Suman and cousin Anita.
PHOTO • Jyoti Shinoli
Right: A brick kiln site in Jadhavwadi. The high temperatures and physically arduous tasks for exploitative wages make brick kilns the last resort of those seeking work
PHOTO • Jyoti Shinoli

डेरी: अर्जुन, अपन दाई सुमन अऊ बहिनी अनीता के संग. जउनि: जाधववाड़ी मं एक ठन ईंट भट्ठा. भारी तापमान अऊ हाड़तोड़ मिहनत, सबले कम रोजी मिले सेती काम बूता खोजे निकरे मजूर मन बर ईंटा भठ्ठा सबले आखिरी ठिकाना होथे

अर्जुन के दाई-ददा, सुमन अऊ अबासाहेब गंगापुर तालुका के अपन गाँव वडगांव के तीर तखार के खेत मं बनिहारी करथें. वो ला खेती अऊ धान लुये के सीजन मं महिना मं करीबन 20 दिन काम मिलथे अऊ रोजी मं 250-300 रूपिया कमाथें. ये महिना मन मं अर्जुन अपन गाँव के स्कूल मं जाय सकथे.

बीते बछर, ओकर दाई-ददा मन अपन झोपड़ी के बगल मं एक ठन पक्का घर बनाय सेती ऊचल (बियाना) ले रहिन. सुमन कहिथे, “हमन 1.5 लाख रूपिया बयाना लेन अऊ घर के नींव धरेन. ये बछर हमन भिथि डरे सेती एक लाख रूपिया के एक ठन अऊ बियाना ले लेन.”

बहिर जाके अपन बूता काम करे ला बतावत कहिथे, हमन कऊनो दीगर जरिया ले बछर भर मं एक लाख रूपिया नई कमाय सकन. ये (ईंटा भठ्ठा मं बूता करे जाय) ह एकेच तरीका आय. वो ह कहिथे के हो सकत हे अवेइय्या बछर फेर आहीं, “अपन घर के पलस्तर के बेवस्था करे सेती.”

दू बछर बनाय मं अऊ दू बछर जाय मं –ये मंझा मं अर्जुन के पढ़ई छुट गे. सुमन के पांच झिन लइका ले चार झिन स्कूल छोड़ दीन अऊ 20 बछर ले पहिली वो मन के बिहाव कर दे गीस. अपन लइका मन के अगम ले संसो मं परे अऊ दुखे वो ह कहिथे, “मोर बबा-डोकरी दाई ईंटा भठ्ठा मं काम करत रहिन; फेर मोर दाई-ददा घलो, अऊ अब मंय ईंटा भठ्ठा मं बूता करथों. मोला पता नई के बहिर जाके बूता करे के ये चक्कर कइसने सिराही.”

अर्जुन अकेल्ला बांचे हवय जऊन ह अभू घलो पढ़त हवय, फेर वो ह कहिथे, “छे महिना स्कूल नई जाय के बाद, जब मंय घर लहुंटथों त पढ़ई मं मोर मं नई लगय.”

अर्जुन अऊ अनीता (ओकर ममेरी बहिनी) हरेक दिन छे घंटा एक ठन डे केयर सेंटर मं रहिथें. जऊन  ला अवनी नांव के गैर सरकारी संगठन ह भठ्ठा मन मं चलावत हवय. अवनि ह कोल्हापुर अऊ सांगली मं 20 ले जियादा ईंटा भठ्ठा अऊ कुछेक कुसियार के खेत मं डे-केयर सेंटर चलाथे. अवनी के कतको पढ़ेइय्या लइका कातकरी हवंय, जऊन ह विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) धन बेलदार के रूप मं रखे गे हवंय, ये मन घुमंतू जनजाति के रूप मं सूचीबद्ध हवंय. अवनी के कार्यक्रम समन्वयक, सत्तप्पा मोहिते बताथें, करीबन 800 पंजीकृत ईंट भठ्ठा सेती काम बूता खोजे ये प्रवासी मजूर मन कोल्हापुर आय ला पसंद करथें.

Avani's day-care school in Jadhavwadi brick kiln and (right) inside their centre where children learn and play
PHOTO • Jyoti Shinoli
Avani's day-care school in Jadhavwadi brick kiln and (right) inside their centre where children learn and play
PHOTO • Jyoti Shinoli

जाधववाड़ी ईंट भठ्ठा मं अवनी के डे-केयर स्कूल अऊ (जउनि) ये सेंटर के भीतर के जगा जिहां लइका मन खेलथें अऊ सीखथें

अनीता मुचमुचावत कहिथे, “इहाँ (डे-केयर सेंटर) मंय कच्छा चौथी के किताब नई पढ़वं.वइसे हमन ला खाय अऊ खेले ला मिलथे.” 3 ले 14 बछर उमर के करीबन 25 प्रवासी लइका अपन दिन के बखत ये सेंटर मं बिताथें. मध्याह्न भोजन ला छोड़ के ल इ का मन ला खेले अऊ कहिनी सुने ला मिलथे.

जब सेंटर के बखत खतम हो जाथे, अर्जुन हिचकत कहिथे, “हमन ईंटा बनाय मं दाई-ददा के मदद करथन.”

सात बछर के राजेश्वरी नयनेगेली सेंटर के लइका मन ले एक झिन आय. वो ह कहिथे, “मंय कभू-कभू अपन दाई के संग रतिहा मं ईंटा बनाथों.” कर्नाटक के अपन गाँव मं कच्छा दूसरी मं पढ़ेइय्या राजेश्वरी अपन बूता करे मं माहिर हवय. “दाई अऊ ददा मंझनिया मं माटी सानथें, अऊ रात मं ईंटा बनाथें. जइसने वो मन करथें मंय वइसने करथों.” वो ह माटी ला ईंटा के सांचा मं भरथे, फेर वोला सरलग थपकी देवत जमा लेथे. येकर बाद ओकर दाई धन ददा वोला खोल देथें काबर नान लइका बर येला उठाय बनेच भारी होथे.

राजेश्वरी कहिथे, “मोला पता नई के मंय कतक ईंटा बनाथों, फेर जब मंय थक जाथों त सुत जाथों अऊ दाई-ददा बूता करत रहिथें.”

अवनी के 25 लइका मन ले ककरो करा घलो ईजीसी कार्ड नई ये, जेकर ले कोल्हापुर जाय के बाद वो मन पढ़ई करत रहे सकंय,वइसे सबले जियादा महाराष्ट्र लेच हवंय. दूसर बात ये आय के लकठा के स्कूल ह भठ्ठा ले डेढ़ कोस (5 किमी) दूरिहा हवय.

अर्जुन कहिथे, “स्कूल अतका दूरिहा हवय.हमन ला कऊन लेके जाही?”

ईजीसी कार्ड,दाई-ददा अऊ लइका ला घलो ये भरोसा देथे के गर नजीक के स्कूल एक किलोमीटर ले जियादा दूरिहा हवय, अइसने मं “प्रवासी लइका मन के पढ़ई सेती क्लास लगवाय अऊ आय जाय के सुविधा करे के जिम्मा ऊहाँ के शिक्षा विभाग, ज़िला परिषद अऊ नगर निगम के हे.”

फेर जइसने के एनजीओ अवनी के स्थापना करेइय्या अऊ  डायरेक्टर अनुराधा भोसले बताथें, “ये प्रावधान सिरिफ कागज मं हवय.” अनुराधा ये मामला मं बीते 20 बछर ले काम करत हवंय.

Left: Jadhavwadi Jakatnaka, a brick kiln site in Kolhapur.
PHOTO • Jyoti Shinoli
Right: The nearest state school is five kms from the site in Sarnobatwadi
PHOTO • Jyoti Shinoli

डेरी : कोल्हापुर के एक ठन ईंट भट्टा, जाधववाड़ी जकातनाका. जउनि : इहां ले सबले लकठा के सरकारी स्कूल सरनोबतवाड़ी मं हवय, जऊन ह डेढ़ कोस दूरिहा हवय

अहमदनगर जिला ले आय 23 बछर के आरती पवार घलो कोल्हापुर के ईंट भठ्ठा मं बूता करथें. “मोर दाई-ददा मन 2018 मं मोर बिहाव कर दे रहिन.” वो ला सातवीं कच्छा के बाद पढ़ई छोड़े ला परे रहिस..

आरती कहिथे, “मंय पहिली स्कूल जावत रहेंव, फेर अब मंय ईंटा भठ्ठा मं बूता करथों.”

*****

“बीते दू बछर ले मंय कुछु घलो पढ़े नई ओं. हमर करा स्मार्टफोन घलो नई ये,” मार्च 2020 ले लेके जून 20 21 के बखत ला सुरता करत अर्जुन कहिथे, जब कोविड-19 सेती सब्बो पढ़ई आनलाइन के भरोसा रहे ला लगे रहिस.

अर्जुन बताथे, “इहाँ तक ले महामारी के पहिले घलो मोर बर अपन कच्छा ला पास करे भारी कठिन रहिस, काबर मंय कतको महिना स्कूल नई जाय सके रहेंव. मोला पांचवीं कच्छा दुबारा पढ़े ला परिस.” वो ह अब आठवीं मं पढ़थे. महाराष्ट्र के अधिकतर दूसर लइका मन के जइसने अर्जुन ला घलो महामारी बखत दू बेर (छठवीं अऊ सातवीं मं) सीधा पास करके एजीला कच्छा मं भेज दे गीस, येकर बाद घलो के वो ह स्कूल मं गैरहाजिर रहिस,फेर सरकार के इही आडर रहिस.

साल 2011 के जनगणना के मुताबिक, देश के भीतर मं दूसर जगा बूता करे जवेइय्या जम्मो लोगन के आंकड़ा भारत के कुल अबादी के करीबन 37 फीसदी (45 करोड़) हवय, अऊ एक ठन अनुमान के मुताबिक ये मं एक बड़े आंकड़ा लइका मन  के हे. ये बड़े आंकड़ा कारगर नीति बनाय ला असर करथे अऊ ये नीति के समुचित कार्रवाई भारी जरूरी आय. साल 2020 मं छपे आईएलओ के एक ठन रिपोर्ट मं अइसने जरूरी कदम उठाय के अनुशंसा करे गे हवय, जेकर ले प्रवासी मजूर मन के लइका बगेर कऊनो बाधा के पढ़ई करत रहेंय.

अशोक तांगडे कहिथें, “केंद्र अऊ राज सरकार प्रवासी लइका मन के शिक्षा ला तय करे के नीति ला लेके थोकन घलो गहिर ले बिचार नई करेंय.” अइसने हालत मं प्रवासी लइका मन ला, न सिरिफ शिक्षा के अधिकार ले रोके जावत हे फेर वो मन ला भारी असुरक्षित माहौल मं रहे सेती मजबूर घलो करे जावत हवय.

ओडिशा के बरगढ़ जिला के सुनलरंभा गांव के एक झिन नानकन नोनी गीतांजलि सुना नवंबर 2022 मं अपन दाई-ददा अऊ बहिनी के संग भारी दूरिहा ले कोल्हापुर के ईंटा भठ्ठा मं आय हवय. भारी मसीन के अवाज के मंझा मं 10 बछर के गीतांजलि, अवनी मं दूसर लइका मन के संग खेलथे. अऊ ये लइका मन के हँसी-खुसी के अवाज ओतके बखत सेती कोल्हापुर के वो ईंटा भठ्ठा के तीर-तखार के धुर्रा भरे हवा मं मेंझर जाथे.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Jyoti Shinoli is a Senior Reporter at the People’s Archive of Rural India; she has previously worked with news channels like ‘Mi Marathi’ and ‘Maharashtra1’.

Other stories by Jyoti Shinoli
Illustration : Priyanka Borar

Priyanka Borar is a new media artist experimenting with technology to discover new forms of meaning and expression. She likes to design experiences for learning and play. As much as she enjoys juggling with interactive media she feels at home with the traditional pen and paper.

Other stories by Priyanka Borar
Editors : Dipanjali Singh

Dipanjali Singh is an Assistant Editor at the People's Archive of Rural India. She also researches and curates documents for the PARI Library.

Other stories by Dipanjali Singh
Editors : Vishaka George

Vishaka George is Senior Editor at PARI. She reports on livelihoods and environmental issues. Vishaka heads PARI's Social Media functions and works in the Education team to take PARI's stories into the classroom and get students to document issues around them.

Other stories by Vishaka George
Video Editor : Sinchita Parbat

Sinchita Parbat is a Senior Video Editor at the People’s Archive of Rural India, and a freelance photographer and documentary filmmaker. Her earlier stories were under the byline Sinchita Maji.

Other stories by Sinchita Parbat
Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

Other stories by Nirmal Kumar Sahu