“एसडीएम (सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट) जून में अइलन आ कहलन, ‘ई जगह खाली करावे के नोटिस बा’.”
बाबूलाल आदिवासी आपन गांव गहदरा में दाखिल होखे घरिया लागल बिसाल बरगद के गाछ ओरी इसारा कइलन. ई उहे जगह बा, जहंवा गांव के लोग सभा करेला, आ अब ऊ अइसन जगह बा जे एक दिन में लोग के भाग बदल देलक.
मध्य प्रदेस के पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) आउर ओकरा लगे के 22 गांवन के हजारन बाशिंदा लोग के एगो बांध आउर नदी-जोड़े वाला प्रोजेक्ट खातिर आपन घर, जमीन त्यागे के कहल गइल बा. एकरा खातिर अंतिम पर्यावरणीय मंजूरी त सन् 2017 में ही मिल गइल रहे, आ राष्ट्रीय उद्यान में गाछ सब के कटाइयो सुरु हो गइल रहे. बाकिर विस्थापन के धमकी अब तेज हो गइल बा.
दू दसक से जादे समय से 44,605 करोड़ के ई परियोजना ( पहिलका चरण ) चल रहल बा. एकर मकसद केन आ बेतवा नदी के 218 किमी लमहर नहर से जोड़े के बा.
एह परियोजना के जम के आलोचना भ रहल बा. पैंतीस बरिस से एह जलक्षेत्र से जुड़ल वैज्ञानिक हिमांशु ठक्कर के कहनाम बा, “एह परियोजना के कवनो औचित्य नइखे. एकड़ा से जुड़ल जल विज्ञान के बात कइल जाव, त ओकरा हिसाब से एकर कवनो मतलब नइखे. पहिल बात त ई कि केन नदी में फाजिल (अतिरिक्त) पानी नइखे. एकरा से जुड़ल कवनो विश्वसनीय मूल्यांकन, चाहे निष्पक्ष अध्ययन नइखे भइल. सब कुछ पहिले से निर्धारित निष्कर्षे पर हो रहल बा.”
ठक्कर साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) संस्था के समन्वयक बानी. ऊ नदियन के आपस में जोड़े खातिर जल संसाधन मंत्रालय (अब जल शक्ति) ओरी से सन् 2004 के आस-पास बनल विशेषज्ञ समिति के सदस्यो बाड़न. उनका हिसाब से एह परियोजना के मूल आधार चौंकावे वाला बा: “नदियन के आपस में जोड़े से जंगल, नदी, जैव विविधता पर बहुत बड़ असर पड़ी. ई असर पर्यावरण आउर समाज दुनो रूप से लउकी. ई इहंवा के लोग के साथे-साथे बुंदेलखड आउर ओकरो से आगू के लोग के दरिदर बना दीही.”
केन नदी पर बन रहल 77 मीटर ऊंच बान्ध में 14 ठो गांव डूब जाई. एह में बाघो सब के ठिकाना जलमग्न हो जाई, बहुते जरूरी वन्यजीव गलियारा (वाइल्डलाइफ कॉरिडोर) में भी कमी आई. एहि से सरकार क्षतिपूर्ति भूमि के रूप बाबूलाल जइसन दोसर आठ ठो गांव के वन विभाग के सौंप रहल बा.
अबले कहंवा कुछ गड़बड़ भइल बा. बस लाखन के तादाद में गांव के लोग, खास करके आदिवासी लोग चीता, बाघ , नवीकरणीय ऊर्जा, बान्ध आ खदान खातिर रस्ता बनावेला नियमित रूप से विस्थापित कइल जा रहल बा.
दिन दूना रात चौगुना तरक्की करत प्रोजेक्ट टाइगर अब आपन 51वां साल में बा. 3,682 बाघ (2022 बाघ जनगणना) खातिर भारत के आदिवासी समुदाय बहुते बड़ कीमत देले बा. कहल गलत ना होई, कि ई समुदाय देस के सबले वंचित समुदाय में से बा.
भारत में सन् 1973 में नौ ठो बाघ अभयारण्य रहे, आउर आज एकर गिनती बढ़ के 53 हो गइल बा. सन् 1972 से हमनी जेतना भी बाघ लइनी, हिसाब लगावल जाव त ओकरा खातिर मोटा-मोटी एगो बाघ पर 150 आदिवासी लोग विस्थापित भइल. इहो अनुमान बहुत कम करके लगावल गइल बा.
बात इहंई खतम नइखे होत- 19 जून, 2024 के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के जारी कइल एगो चिट्ठी में लाखन आउर गांवन के स्थानांतरित करे के बात कहल गइल. देस भर में 591 गांवन के प्राथमिकता के आधार पर खाली कइल जाई.
पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में 79 ठो बाघ आ चीता बा. बान्ध के चलते जब मुख्य वन्य इलाका के एगो बड़ हिस्सा डूब जाई, त उहो लोग के त हरजाना मिले के चाहीं. एहि से बाबूलाल के गहदरा के जमीन आउर घर बाघ सब के दे दवल जाव.
सीधे-सीधे कहल जाव त ई वन विभाग खातिर ‘मुआवजा’ बा, गांव के लोग खातिर नइखे जे हमेसा खातिर आपन घर-संसार से दूर हो रहल बा.
पन्ना रेंज के सहायक वनअधिकारी अंजना तिरकी कहेली, “हमनी इहंवा फेरु से जंगल उगाएम. इहंवा के जीव-जंतु के संभारल आउर घास के मैदान बनावल हमनी के काम बा.” ऊ परियोजना से जुड़ल कृषि-पारिस्थितिकी (कुदरत संगे मिलकर कइल जाए वाला खेती) के पहलू पर कुछुओ बोले से परहेज कइली.
अइसे, नाम जाहिर ना करे के शर्त पर अधिकारी लोग मानेला कि सबले अच्छा रहित कि 60 वर्ग किमी के घना आ जैव विविधता वाला जंगल के डूबे के भरपाई गाछ रोप के कइल जाइत. ई सब यूनेस्को ओरी से पन्ना के बायोस्फीयर रिजर्व के विश्व नेटवर्क में शामिल करे के दू बरिस बाद के बात बा. जंगल से मोटा-मोटी 46 लाख गाछ (2017 में वन सलाहकार समिति के बैठक में कइल गइल आकलन के हिसाब से) काटे के जल विज्ञान संबंधी का असर होई, एकरा बारे में ना सोचल गइल.
बाघे जंगल में रहे वाला असहाय जानवर नइखे. भारत के खाली तीन घड़ियाल (मगरमच्छ) अभयारण्य में से एक अभयारण्य, बने वाला बान्ध से कुछे किमी नीचे ओरी स्थित बा. ई इलाका भारत के गिद्ध सब खातिर एगो जरूरी ठिकाना बा, जे गंभीर रूप से खतम हो रहल चिरई सभ खातिर आईयूसीएन के रेड लिस्ट में बा. एकरा अलावे इहंवा कइएक बड़ शाकाहारी आ मांसाहारी जनावरो बा, जे बेघर हो जाई.
बाबूलाल छोट किसान बाड़न. उनका लगे बरखा पर निर्भर कुछ बीघा खेत बा. एकरे से उनकर परिवार के गुजारा होखेला. “चूंकि इहंवा से निकले के कवनो तिथि नइखे बतावल गइल, एहि से हमनी सोचनी तबले तनी मकई बो देवल जाव, ताकि हमनियो पेट भर सकीं.” ऊ आउर गांव के सैंकड़न लोग जब आपन खेत तइयार करत रहे, तबे वन रेंजर लोग आ गइल. “हमनी के रुके के कहल गइल. कहल गइल, ‘ना सुनब, त ट्रैक्टर से तोहर खेत रौंद देवल जाई.’”
पारी के आपन परती जमीन देखावत ऊ बड़ाबड़ाए लगलन, “ना त हमनी के पूरा हरजाना देवल गइल कि हमनी जा सकीं, ना हमनी के इहंवा रहे आउर खेती करे देवल जात बा. हमनी सरकार से कहत बानी- जबले हमनी के गांव बा, खेत जोते द... ना त हमनी खाएम का?”
पुश्तैनी घर गंवावे के एगो अलगे पीड़ा बा. दुखी स्वामी प्रसाद परोहर पारी के बतइलन कि उनकर परिवार 300 साल से जादे बखत से गहदरा में रहत आइल. “हमनी खेतिए से घर चलावत रहीं. सालों भर जंगल से महुआ, तेंदू जइसन चीज मिल जात रहे. अब हमनी कहंवा जाएम? कहंवा जाके मरम? कहंवा जाके डूबम... के जानत बा?” अस्सी बरिस के एह किसान के इहे बात खइसे जा रहल बा कि नयका पीढ़ी जंगल से पूरा तरीका से कट जाई.
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नदी जोड़ो परियोजना ‘बिकास’ के नाम पर सरकार ओरी से जमीन हथियावे के नयका हथकंडा बा.
अक्टूबर 2023 में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (केबीआरएलपी) के अंतिम मंजूरी मिलल, त ओह घरिया के भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एकर बढ़-चढ़ के स्वागत कइलन. ऊ एकरा “बुंदेलखंडी लोग खातिर सौभाग्य बतइलन, जे लोग पीछे रह गइल रहे”. ऊ आपन राज्य के हजारन किसान, चरवाहा, जंगल में रहे वाला आदिवासी आ ओह लोग के परिवार के कवनो जिकिर ना कइलन, जे लोग से एह परियोजना चलते घर-जमीन छीना जाई. ऊ इहो ना देखलन कि वन मंजूरी एह आधार पर देहल गइल बा कि बिजली के उत्पादन पीटीआर के बाहिर होई, जबकि अब ई भीतरिए हो रहल बा.
बेसी पानी वाला के, कम पानी वाला नदी बेसिन में जोड़े के बिचार 1970 के दसक में ही जनम ले लेले रहे. एहि खातिर ओह घरिया राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) बनावल गइल. एजेंसी देस में 30 नदी सब के बीच 30 ठो लिंक- नहर के ‘भव्य हार’ के संभावना पर अध्ययन सुरु कइलक.
केन नदी मध्य भारत के कैमूर पहाड़ी से निकलेला आ गंगा बेसिन के हिस्सा बा. ई नदी उत्तर प्रदेस के बांदा जिला में यमुना नदी से जाके मिलेला. आपन 427 किमी के लमहर यात्रा में ई पन्ना बाघ अभयारण्य से होके गुजरेला. पार्क के भीतर ढोदन गांव, बांध के स्थल बा.
केन के बहुते दूर पस्चिम दिसा में बेतवा नदी बहेला. केबीएलआरपी केन के ‘फाजिल’ पानी लेके एकरा ‘कम’ पानी वाला बेतवा नदी में ऊपरी ओर भेजे के सोचले बा. दूनो के जुड़े से बुंदेलखंड के पानी के कमी वाला इलाका में 343,000 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई मिले के उम्मीद बा. ई सब इलाका आर्थिक रूप से पिछड़ल रहल बा, बाकिर जरूरी भोटबैंक मानल जाला. बाकिर असल में, वैज्ञानिक लोग के कहनाम बा कि एह परियोजना से बुंदेलखंड से पानी के बुंदेलखंड के बाहर ऊपरी बेतवा बेसिन के इलाका में ले जाए में सुविधा होई.
डॉ. नचिकेत केलकर के कहनाम बा कि केन में फाजिल पानी होखे के धारणा सही नइखे, एकरा पर सवाल उठे के चाहीं. सिंचाई खातिर पानी केन पर पहिलहीं से मौजूद बरियारपुर बैरेज, गंगऊ आ पवई बान्ध में से कवनो एगो से उपलब्ध करावल जाए के चाहत रहे. वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के एह पारिस्थितिकीविद् कहलन, “हम कुछ बरिस पहिले बांदा आ केन के लगे के इलाका के दौरा कइले रहीं, त अक्सरहा इहे सुने में आवे कि सिंचाई खातिर पानी नइखे.”
सन् 2017 में सउंसे नदी के पैदले नापे वाला एसएएनडीआरपी के शोधकर्ता लोग एगो रिपोर्ट में लिखलक, “केन नदी सभे जगहा बारहमासी नदी नइखे रह गइल. एकर बहुते हिस्सा में पानी के अभाव रहेला.” केन त आपने सिंचाई करे में सक्षम नइखे. एह स्थिति में जदि एकरा में से बेतवा खातिर पानी लेवल जाई, त एकर आपन इलाका आफत में पड़ जाई. उनकरा हिसाब से बान्ध के लेके लोग के बहुते पीत (गोस्सा) चढ़ल बा काहेकि एकरा से मध्य प्रदेस के लोग हरमेसा खातिर वंचित हो जाई, जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेस के एकरा से फायदा होई.
तिवारी कहले, “बान्ध चलते लाखन के तादाद में गाछ, हजारन जनावर सब डूब जाई. आदिवासी लोग (जंगलवासी) बेघर हो जाई, ओह लोग के आजादी छिना जाई. लोग गोस्सा में बा, बाकिर सरकार के कवनो परवाह नइखे.”
“कहूं ई लोग (राज्य सरकार) राष्ट्रीय पार्क बना देवेला, कहूं एह-ओह नदी पर बान्ध बना देवेला. लोग के घर-बार छिना रहल बा... लोग पलायन कर रहल बा...” जनका बाई कहली. सन् 2015 में विस्तारित पीटीआर उमरावन के उनकर घर लील लेले रहे.
पचास पार कर चुकल, गोंड आदिवासियन के एगो गांव, उमरावन के रहबासी दसियो बरिस से उचित हरजाना खातिर लड़ रहल बाड़ी. “सरकार के हमनी के, हमनी के लरिकन के भविष्य के नइखे पड़ल. ऊ लोग हमनी संगे खिलवाड़ कर रहल बा,” ऊ बाघ परियोजना खातिर ले लेवल गइल आपन जमीन ओरी देखावत कहली. ऊ बतइली कि एह जमीन पर अब रिसॉर्ट बनावल जा रहल बा. “हमनी के निकाल बाहिर करके अब इहंवा पर्यटक लोग के बोलावे, ठहरावे के प्लान चल रहल बा... नाप-जोख हो रहल बा.”
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दिसंबर 2014 में केन-बेतवा जोड़ो परियोजना के बारे में एगो सार्वजनिक सुनवाई में ऐलान कइल गइल रहे.
अइसे त गांव के लोग कहेला कि कवनो सुनवाई ना भइल रहे, सिरिफ बेदखली के नोटिस देवल गइल आउर मुंहा-मुंही वादा कइल गइल. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास आ पुनर्स्थापन अधिनियम , 2013 (एलएआरआरए) के हिसाब से उचित मुआवजा आ पारदर्शिता के अधिकार के ई उल्लंघन बा. अधिनियम एह बात के जरूरी बातवेला कि, “भूमि अधिग्रहण के बारे में आधिकारिक राजपत्र, स्थानीय समाचार पत्र में स्थानीय भाषा में, प्रासंगिक सरकारी साइट पर बतावे के चाहीं.” अधिसूचना जारी कइला के बाद, एह मकसद खातिर बोलावल गइल बैठक के बारे में गांव के ग्राम सभा (परिषद) के जानकारी देवे के चाहीं.
“सरकार अधिनियम में बतावल गइल कवनो तरीका से लोग के सूचित ना कइलक. हमनी केतना बेरा पूछनी, ‘रउआ लोगनी कानून के कवन धारा के हिसाब से अइसन कदम उठा रहल बानी’,” सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर कहलन. एहि बरिस जून में ऊ जिला कलेक्टर के कार्यालय में ग्राम सभा के मंजूरी के प्रमाण देखावे के मांग करत बिरोध प्रदर्सन कइले रहस. प्रदर्शन में ओह लोग पर लाठी चलावल गइल.
आम आदमी पार्टी के भटनागर कहले, “पहिले बताई ना, कि रउआ (राज्य) ग्राम सभा के कवन बैठक कइनी, काहेकि रउआ लोगनी अइसन कइबे नइखी कइले. दोसर बात कि एह योजना खातिर कानून के हिसाब से लोग राजी होखे के चाहीं, जे ऊ लोग नइखे. आउर तेसर बात, जदि ऊ लोग जाए के तइयारो बा, त ओह लोग के कहंवा भेजल जा रहल बा? केहू एह बारे में कुछो ना कहलक, ना त कवनो नोटिस देवल गइल, ना एह मामला में कवनो जानकारी देवल गइल.”
एलएआरआरए के अनादरे ना कइल गइल, बलुक राज्य के अधिकारी लोग सार्वजनिक मंच से वादो कइलक. ढोदन के रहे वाला गुरुदेव मिश्रा कहेलन कि हर आदमी ठगल महसूस करत बा. “सरकारी बाबू लोग कहलक, ‘हमनी रउआ लोग के जमीन के बदला में जमीन देहम, घर के बदला में पक्का घर मिली, रोजगार मिली. रउआ लोग के बिदाई दुलरी बेटी जेका कइल जाई’.”
पहिले सरपंच रह चुकल भटनागर पारी से गांव के अनौपचारिक बैठक के बारे में बतइलन. “हमनी खाली उहे मांगत बानी, जे सरकार, छतरपुर के जिला कलक्टर, मुख्यमंत्री, केबीआरएलपी प्रोजेक्ट के बाबू लोग इहंवा आके गछले (वादा कइले) रहे. ऊ लोग जे कहलक, ओह में से कुछो ना कइलक.”
गहदरा में पीटीआर के पूरब ओरी, स्थिति कवनो अलग नइखे. “पन्ना के कलेक्टर के कहनाम बा कि हमनी रउआ लोग के वइसहीं बसा देहम, जइसन पहिले रहीं. सब कुछ राउर लोग के सुविधा के हिसाब से होई. हमनी रउआ लोग के गांव फेरु से नया कर देहम.”
मुआवजा के पइसा केतना मिली, एकरा बारे में साफ नइखे. बतावल जा रहल बा कि 18 बरिस से जादे उमिर वाला पुरुख के 12 से 20 लाख मिली. लोग पूछ रहल बा: “एकर मतलब का बा? ई रकम एक आदमी खातिर बा, कि एक परिवार खातिर? आउर जहंवा मेहरारू मुखिया होइहन, उहंवा का होई? आउर का ऊ लोग हमनी के जमीन खातिर अलग से मुआवजा दी? हमनी के जनावर सब के का होई? हमनी के कुछो साफ नइखे बतावल गइल.”
सरकारी कार्रवाई के पाछू छिपल झूठ आ भ्रम के स्थिति चलते पारी जवन गांव गइल, केहू के ना पता रहे ऊ लोग कब आउर कहंवा जाई. 22 गांव के लोग दुविधा में जी रहल बा.
ढोदन के आपन घर में बइठल कैलास आदिवासी के डर बा कि बान्ध चलते उनकर जमीन डूब जाई. ऊ जमीन पर आपन मालिकाना हक साबित करे खातिर पुरान आ सरकारी कागज लाके हमनी के देखावत बाड़न. “ऊ लोग कहेला कि हमार नाम पर पट्टा (स्वामित्व के आधिकारिक दस्तावेज) नइखे. बाकिर हमरा लगे ई रसीद बा. हमार बाऊजी, उनकर बाऊजी, आउर उनकर बाऊजी... ई जमीन ऊ सभे लोग के बा. हमरा लगे सब चीज के रसीद बा.”
वन अधिकार अधिनियम 2006 के हिसाब से आदिवासी, चाहे जंगल में बसे वाला आदिवासी लोग “जंगल पर कवनो तरह के स्थानीय प्राधिकरण, चाहे कवनो राज्य सरकार के जारी कइल पट्टा, चाहे लीज, चाहे अनुदान के मालिकाना हक में बदल” सकेला.
बाकिर कैलास के मुआवजा ना मिली, काहे कि उनका लगे ‘पर्याप्त’ कागज नइखे. “हमनी दुविधा में बानी, एह जमीन आ घर पर हमनी के हक बा कि ना. इहो नइखे बतावल जात कि मुआवजा मिली कि ना. हमनी के खदेड़ देवे के चाहत बा. केहू नइखे सुनत.”
एह बान्ध चलते 14 गांव डूब जाई. एकरा अलावे दोसर आठ गांवन के राज्य मुआवजा के रूप में बन बिभाग के सुपुर्द कर देले बा
अगिला गांव, पलकोहा में जुगल आदिवासी लोग सभे के सामने बात करे के ना चाहत रहे. हमनी गांव से दूर गइनी, त ऊ बतइलन, “पटवारी (मुखिया) कहेला कि ओकरा लगे हमार पट्टा के कवनो रिकॉर्ड नइखे. अधिया लोग के तनी-मनी मुआवजा त मिलल ह, बाकी लोग के कुछुओ ना मिलल.” उनका चिंता बा कि जदि ऊ हर साल जेका काम खातिर बाहिर गइलन, त मुआवजा से चूक जइहन, आ उनकर सात ठो लरिकन के भविष्य अन्हार हो जाई.
“लरिका रहीं, त जमीन पर काज करत रहीं. हमनी जंगलो जात रहीं,” ऊ इयाद करत बाड़न. बाकिर पछिला 25 बरिस में, बाघ के अभयारण्य बन चुकल जंगल में घुसे पर रोक लगगा से उनकर जइसन आदिवासी लोग लगे कमाए खातिर पलायन करे के अलावे कवनो चारा नइखे रह गइल.
विस्थापन के प्रभाव में आवे वाला गांव के मेहरारू लोग उचित मुआवजा खातिर अड़ल बा. रविदास (दलित) समुदाय से आवे वाली पलकोहा के किसान सुन्नी बाई कहेली, “प्रधानमंत्री मोदी हमेसा इहे कहेलन ‘मेहरारू लोग खातिर हई स्कीम बा... त मेहरारू खातिर हऊ स्कीम बा.’ हमनी के ऊ सब कुछो ना चाहीं. बस आपन हक चाहीं.”
“खाली मरदे लोग के काहे (मुआवजा) पैकेज मिल रहल बा, मेहरारू लोग खातिर कुछुओ नइखे. सरकार कवना आधार पर ई कानून बनइले बा? जदि कवनो मेहरारू के आपन मरद संगे झगड़ा हो जाई, त का होई. ऊ आपन आ आपन लरिकन के पेट कइसे पाली? कानून के ई सब सोचे के चाहीं नू... आखिर मेहरारुओ त भोट देवेली.”
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“जल, जीवन, जंगल आ जानवर, हमनी सभे खातिर लड़ाई लड़ रहल बानी”
ढोदन के गुलाब बाई हमनी के आपन बड़का अंगना देखइली आ कहली कि घर खातिर जे मुआवजा मिल रहल बा, ओह में आंगन आ चौका के गिनती नइखे कइल गइल. काहे कि ई दूनो चीज ओह लोग के घर के कमरा के ‘देवाल’ से बाहर पड़ेला. साठ बरिस के गुलाब बाई हार माने के तइयार नइखी. “हमरा जइसन आदिवासी के सरकार से कुछुओ नइखे मिलल. हम इहंवा से भोपाल (राज्य के राजधानी) ले लड़म. हमरा लगे ताकत बा. हम उहंवा रहल चुकल बानी. हमरा डर नइखे. हम आंदोलन खातिर तइयार बानी.”
केबीआरएलपी के खिलाफ बिरोध सन् 2017 में गांव के बैठक के जरिए छोट स्तर पर सुरु हो गइल रहे. बाद में ई बिरोध जोर पकड़े लागल आउर 31 जनवरी, 2021 के 300 से जादे लोग एलएआरआरए के खिलाफ छतरपुर जिला कलेक्टर के कार्यालय में आपन बिरोध जाहिर करे खातिर जुटल. सन् 2023 में गणतंत्र दिवस के मौक पर, तीन ठो जल सत्याग्रह (पानी से जुड़ल बिरोध प्रदर्शन) में से पहिल में पीटीआर के 14 गांव के हजारन लोग आपन संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठइले रहे.
गांव के लोग के कहनाम बा कि ओह लोग के नाराजगी प्रधानमंत्री ले पहुंच गइल बा. एहि से जब ऊ पछिला बरिस बान्ध के उद्घाटन करे अइलन, त ढोदन ना आइलन. बाकिर रिपोर्टर एह बात के स्वतंत्र रूप से पुष्टि ना कर सकल.
परियोजना के लेके विवाद आउर दुर्भावना चलते अगस्त 2023 में सुरु होखे वाला टेंडर प्रक्रिया पर असर पड़ल. केहू एह में दिलचस्पी ना लेलक. मजबूरी में तारीख छव महीना आउर बढ़ा देवल गइल.
सरकारी कार्रवाई के पाछू छिपल झूठ आ भ्रम के स्थिति चलते पारी जवन गांव गइल, केहू के ना पता रहे ऊ लोग कब आउर कहंवा जाई, चाहे घर, जमीन, जनावर आ गाछ खातिर केतना मुआवजा मिली, आ कब मिली
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“मध्य भारत के लोग जलवायु बदलाव के मुद्दा पर जादे बात ना करे. जबकि इहंई जादे बरखा के साथे-साथे तेजी से बढ़ रहल सूखा भी देखे में आ रहल बा, जेकरा से हवा-पानी बदले के संकेत मिलेला,” पारिस्थितिकीविद् केलकर बतइलन. “मध्य भारत में हवा-पानी बदले चलते जादेतर नदियन के बहाव में तेजी देखल जा रहल बा. बाकिर ई जादे दिन ले ना रही. बहाव बेसी पानी होखे के धारणा के बल दे सकत बा, बाकिर जलवायु परिवर्तन के बारे में जेतना अनुमान लगावल गइल बा, ओकरा से साफ बा कि ऊ जादे दिन खातिर ना रही.”
ऊ चेतइलन कि जदि एह तरह के कम समय के बदलाव के आधार पर नदी के जोड़े के सोचल जात बा, त एकरा से भविष्य में एह क्षेत्र के जादे सूखा के सामना करे पड़ सकत बा.
ठक्कर इहो चेतावनी देलन कि कुदरती वन के बिसाल क्षेत्र के बिनास के जल विज्ञान संबंधी प्रभाव बहुते बड़ गलती बा. “सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के रिपोर्ट एह पर प्रकास डालले बा. बाकिर ओह रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट एक बार सोचबो ना कइलक.”
नेचर कम्युनिकेशन नाम के पत्रिका में नदी जोड़े के बारे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई ओरी से सन् 2023 में छपल एगो शोधपत्र में चेतावल गइल बा: “हस्तांतरित जल से सिंचाई बढ़ला चलते भारत के पहिलहीं से जल के संकट से जूझ रहल इलाका में सितंबर में औसत बरखा में 12 प्रतिशत के कमी आइल बा.... सितंबर में बरखा में कमी से मानसून के बाद नदी सब सूख सकत बा. नतीजा सउंसे देस में जल संकट बढ़ी आ आपस में जोड़े के कदम बेकार साबित हो जाई.”
हिमांशु ठक्कर कहेलन कि राष्ट्रीय जल बिकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) के ई परियोजना जवन आंकड़ा के आधार पर काम कर रहल बा, राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाला देके वैज्ञानिक लोग संगे ओकरा नइखे बांटल जात.
सन् 2015 में जब बान्ध बनावे के बात हकीकत में बदले लागल, त ठक्कर आ एसएएनडीआरपी के दोसर लोग पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) के कइएक चिट्ठी लिखलक. “दोषपूर्ण केन बेतवा ईआईए आ सार्वजनिक सुनवाई के दौरान उल्लंघन” नाम से लिखल गइल एगो लेख में कहल गइल, “प्रोजेक्ट के ईआईए बुनियादी रूप से गड़बड़, अधूरा बा आउर एकरा पर जे सुनवाई भइल ओह में कइएक तरीका से उल्लंघन शामिल बा. एह तरह के अपर्याप्त अध्ययन संगे प्रोजेक्ट के कवनो मंजूरी देवल, ना सिरिफ गलत होई, बलुक कानूनी रूप से भी सही ना होई.”
एह बीच 15-20 लाख से जादे गाछ पहिलहीं कट चुकल बा. मुआवजा के बारे में स्थिति साफ ना होखे से विस्थापन के खतरा मंडरा रहल बा. खेती ठप्प पड़ गइल बा. दिहाड़ी मजूरी खातिर दोसरा जगह जाए वाला के मुआवजा के नाम पर कवनो तरह के मदद से वंचित होखे के डर सता रहल बा.
सुन्नी बाई के एह दू शब्द में सब समाएल बा, “हमनी के सब समाप्त भइल जा रहल बा. ऊ लोग सब छीन रहल बा. ऊ लोग हमनी के सहायता करे के बजाये कहेला ‘हई रहल पैकेज, फारम साइन कर, पइसा ल आ फूट’.”
अनुवाद: स्वर्ण कांता