एस. रामासामी हमरा आपन एगो पुरान दोस्त से मिलइलन. रामासामी पूरा जोस में बतावे लगलन कि उनकर एह दोस्त से मिले केतना तरह के लोग आवेला: पत्रकार, टीवी चैनल, आईएएस, पीसीएस अफसर आउर अइसने कइएक लोग. उनका से एक्को बात ना छूटल होई. आउर छूटे भी काहे, आखिर ऊ एगो सेलिब्रिटी, एगो वीआईपी (बड़का आदमा) के बारे में जे बतावत रहस.

आउर उनकर दोसत बा, 200 बरिस के पुरान गाछ: मालिगमपट्टु के महान आयिरमकाची.

आयिरमकाची मतलब पला मरम, यानी कटहर के गाछ. एगो लमहर आउर खूब फरे वाला गाछ. ई एतना बिसाल रहे कि एकर एक चक्कर लगावे में 25 सेकेंड लाग जाला. ओकर पुरान-पुरान शाखा सभ से कोई सौ ठो हरियर-हरियर कांटा वाला कटहर लटकल रहे. एकरा सामने ठाड़ो भइल गर्व के बात बा. एकर परिक्रमा कइल भाग बा. रामासामी हमार बात सुनके गदगद हो गइलन. खुसी के मारे उनकर मूंछ तन गइल, आंख चमके लागल. आपन 71 बरिस के उमिर में ऊ ढेरे लोग के एह गाछ पर हैरान होखत देखले बाड़न.

खावी धोती पहिनले, आपन पातर कान्हा पर तउनी धइले ऊ गाछ के सामने ठाड़ बतावे लगलन, “ई कडलूर जिला के पनरुती ब्लॉक के मालिगमपट्टु गांव बा. कटहर के ई गाछ हमनी के पुरखा लोग पांच पीढ़ी पहिले लगइले रहे. एकरा ‘आयिरमकाची’ मतलब एक हजार फल देवे वाला कहल जाला. एक साल में एकरा पर 200 से 300 कटहर लाग जाला. सभ कटहर 8 से 10 दिन में तइयार हो जाला.”

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एस. रामासामी बगइचा में आपन मनपसंद आउर महान संगी आयिरमकाची संगे. ई 200 साल पुरान कटहर के गाछ बा

पारी पहिल बेर अप्रिल 2022 में कटहर के किसान आउर ब्यापारी लोग से भेंट करे खातिर तमिलनाडु के कडलूर जिला के पनरुती ब्लॉक पहुंचल रहे. कटहर पूरा राज्य में इहे शहर में सबसे जादे फरेला- खास करके फरवरी से जुलाई के बीच दोकान सभ में कइएक टन कटहर बिकाला. फल बेचे वाला लोग फुटपाथ आउर ट्रैफिक सिग्नल पर कटल कटहर आउर एकर कोवा बेचेला. पनरुती में अइसन कोई दू दरजन दोकान होखी जहंवा थोक भाव से कटहर मिली. रोज पड़ोस के गांवन से कटहर से लदल केतना ट्रक आवेला. एकरा चेन्नई, मदुरई, सलेम से लेके आंध्र प्रदेस ले आउर महाराष्ट्र के मुंबई में थोक ब्यापारी लोग के बेचल जाला.

आर. विजयकुमार के अइसने एगो मंडी बा, जेकरा में हम रामासामी आउर उनकर पुश्तैनी गाछ के बारे में सुननी. विजयकुमार हमरा खातिर रस्ता किनारे चाय के टपरी से चाय कीन के लइलन आउर कहलन, “जाके उनके से भेंट करीं, ऊ रउआ सभ बात बतइहन.” फेरु लगे के बेंच पर बइठल एगो बूढ़ किसान ओरी इसारा करत कहलन, “इनका अपना संगे ले जाईं.”

मालिगमपट्टु उहंवा से कोई पांच किमी होई. ऊ किसान हमरा रस्ता देखावत गइलन. आपन कार से हमनी कोई दस मिनिट में उहंवा पहुंच गइनी. एगो खूब बड़ घर ओरी देखावत, ऊ कहलन, “दहिना मुड़ जाईं, ओह रस्ता से नीचे जाके आउर उहंई रुक जाएम. उहे रामासामी के घर बा.” बरंडा में एगो झूला, गिनल-चुनल कुरसी आउर खूब सुंदर नक्काशीवाला दरवाजा रहे. संगही खेत में उगल समान सभ के कइएक बोरा सब रखल रहे. देवाल पर फोटो, कैलेंडर आउर कइएक कलाकृति सब सजल रहे.

रामासामी के अंदाजा ना रहे केहू उनका से भेंट करे आवे वाला बा. तबो ऊ हमनी के भीतरी बोलइलन, बइठइलन. फेरु किताब आउर फोटो लावे खातिर भीतरी गइलन. एह बिषय में भारी ज्ञान रखे चलते हमरा जइसन जिज्ञासु लोग उनका लगे आवत-जात रहत रहे. अप्रिल के गरमी वाला भोर रहे. हमनी उनका से मिलनी, त ऊ एगो पिलास्टिक के कुरसी पर बइठल रहस. आजू-बाजू दू ठो मेहरारू लोग करुवाडु (सूखल मछरी) बेचत रहस. ओह दिनवा ऊ हमरा कटहर के बारे में ढेरे बात सब बतइलन.

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रामासामी, कडलूर जिला के पनरुती ब्लॉक के मालिगमपट्टु गांव में दुनिया के सबले बड़ फल, कटहर के खेती करेलन. इहंवा के सबले पुरान पेड़ आयिरमकाची के उनकर पुरखा लोग पांच पीढ़ी पहिले लगवले रहे

दुनिया के सबले बड़ फल में से एक, ‘जैक’ (जैकफ्रूट यानी कहटर के आम भाषा में जैक कहल जाला) दक्खिन भारत के पस्छिम घाट के लोकल फसल बा. ई नाम पुर्तगाली शब्द जैकां से निकल के आइल बा, जे मलयालम शब्द चक्का से लेवल गइल रहे. एकर वैज्ञानिक नाम तनी टेढ़ बा: आर्टोकार्पस हेटरोफिलस

बाकिर जब एह नोक वाला, हरियर आउर अजबे देखाई देवे वाला फल के दुनिया ना चिन्हत रहे, तब तमिल कवि लोग एकरा पर कविता लिखले रहे. पला पड़म कहल जाए वाला एह बिसाल फल के चरचा 2,000 बरिस पहिले के प्रेम कविता सभ में खूब मिलेला.

तोहर एतना सुंदर आंख में लोर भरके
ऊ आपन देस लउट गइलन
जहंवा कटहर के गाछ से घेराइल पहाड़ी बा
आउर जहंवा एह गाछ के महकत मांसल फल
शहद के छत्ता तुड़के
पहाड़ी दरार से नीचे गिरेला

अईनकुरुनुरु- 214 , संगम काव्य

अइसने एगो दोसर कविता में, जेकरा अनुवादक सेंतिल नाथन ‘कपिलार के महान कविता’ पुकारेलन, एगो बिसाल आउर पाकल कटहर के तुलना महान प्रेम से कइल गइल बा.

एगो पातर टहनी से लटकल भारी कटहर जेका
ओकर जिनगी चाहे जेतना दुस्वार होखे, बाकिर भीतर भरपूर प्रेम से भरल बा!

कुरुनतोकई-18 , संगम काव्य

के. टी. अचाया आपन किताब ‘इंडियन फूड: आ हिस्टोरिकल कंपैनियन’ में बतइलन कि कोई 400 ईसा पूर्व बौद्ध आ जैन साहित्य में केला, अंगूर आ नींबू जइसन फल संगे कटहरो के जिकिर मिलेला.

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बगइचा में, गाछ के नाचत परछाई के बीच रामासामी ठिठक जालन, आउर गाछ के परे के दुनिया में गुम हो जालन

आईं 16वां सदी के बात करीं. अचाया लिखत बाड़न कि ओह दौरान सम्राट बाबर (डायरी लिखे खातिर जिनकर नाम बा) ‘हिंदोस्तान के फल’ सभ के बारे में सही-सही वर्णन कइले बाड़न. उनकर लिखल पढ़ल जाव त पता चली कि  कटहर उनका जादे पसंद ना रहे. ऊ एकर तुलना भेड़ के पेट भरे खातिर बनावल गइल भोजन, गिपा (हैगिस, जे गुलगुला, चाहे हलुवा जइसन होखेला) से करेलन. आउर एकरा “बेमार कर देवे जेतना मीठ” बतावेलन.

तमिलनाडु में कटहर आजो मनपसंद फल बा. तमिल में पहेली आ कहावत सभ में मुक्कनी, चाहे तमिल इलाका के तीन फल- मा, पला, वाड़ई (आम, कटहर, केला) के मिठास मिली. पंचवर्णम आपन कटहर पर लिखल गइल नामी किताब, ‘पला मरम: द किंग ऑफ फ्रूट्स’ में कइएक दोसर कहावत सभ के जिकिर कइले बाड़न. अइसने एगो सुंदर लाइन बा:

मुल्लुकुल्ले मुत्तुकुलईयम. अधि एन्न? पलापड़म.
(एगो अइसन फल जे कांटा के बीच मोती जइसन रहेला. ऊ का बा? कटहर.)

हाले में ई फल मीडिया में भी बहुते चरचा बटोरले बा. इंटरेनशनल जर्नल ऑफ फूड साइंस में 2019 में छपल एगो पेपर में आरएएसएन. रणसिंघे कहत बाड़न, “पुरान दवाई सभ में कटहर के गाछ के फल, पत्ता, छाल सहित कइएक हिस्सा के बहुते जादे काम में लावल जाला. काहेकि एकरा में कैंसर से बचावे, बैक्टीरिया आ फंगल संक्रमण के रोके, दरद दूर करे आउर हाइपोग्लाइसेमिक असर (मधुमेह से बचावे) के क्षमता बा. एकरा बावजूद जहंवा एकर खेती कइल जाला, ओह इलाका में वाणिज्यिक स्तर पर प्रसंस्करण बहुते सीमित बा.”

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बावां: रामासामी के बगइचा में कटहर के पौधा. दहिना: कांटा वाला हरियर फल गाछ से लटके लागल बा. कटहर के मौसम में जल्दिए एकरा से पूरा तना ढंका जाई

तमिलनाडु के कडलूर जिला के पनरुती ब्लॉक कटहर के राजधानी कहल जाला. कटहर आउर एकर भूगोल के बारे में रामासामी के गहिर ज्ञान बा. एह इलाका में पानी जमीन से 50 फीट नीचे बा. बरसात में उगेला, त एकर मूसल जड़ सभ सड़ जाला. ऊ बतावत बाड़न, “काजू आउर आम के गाछ पानी सोख लेवेला. बाकिर कटहर के ना सोखे. जदि बाढ़ आ गइल, त समझ गाछ गइल.”

उनकर अनुमान बा कि उनकर गांव मालिगमपट्टु से कोई 20 किमी के भीतर आवे वाला खेत के एक-चौथाई हिस्सा में कटहर उगावल जाला. तमिलनाडु सरकार के 2022-23 के एग्रीकल्चरल पॉलिसी नोट के हिसाब से राज्य में 3,180 हेक्टेयर इलाका में कटहर उगावल जाला. एह में से 718 हेक्टेयर कडलूर जिला में पड़ेला.

साल 2020-21 में भारत के 191,000 हेक्टेयर जमीन पर कटहर के खेती होखत रहे. कडलूर भलही एगो छोट जिला होखे, बाकिर एह इलाका में कटहर एगो महत्वपूर्ण फसल मानल जाला. तमिलनाडु में उगे वाला हर चार में से एक कटहर इहंई उगेला.

पला मरम के दाम का होई? रामासामी एकरा बारे में बतइलन. ऊ कहलन कि 15 चाहे 20 बरिस पुरान एगो गाछ खातिर पट्टा कोई 12,500 रुपइया सलाना बा. “पांच बरिस पुरान गाछ के एतना दाम ना मिल सके. ओकरा से खाली तीन से चार फल मिली. जबकि 40 बरिस पुरान गाछ में 50 से जादे फल लागेला.”

जइसे-जइसे गाछ पुरान होखत जाला, जादे कटहर फऱे लागेला.

एक गाछ के हिसाब से कमाई के अंदाज कइल तनी मुस्किल बा. अनिस्चित भी. ओह दिनवा पनरुती में किसान लोग के एगो मंडली जोड़-घटाव करके बतइलन कि सौ गाछ से ओह लोग के 2 से 2.5 लाख के कमाई हो जाला. एह में 50 से 70 हजार रुपइया खाद, कीटनासक, मजूरी, आवे-जाए आउर कमीशन में खरचा हो जाला.

रामासामी के अलबम से मालिगमपट्टु के 200 बरिस के आयिरमकाची के फोटो

बाकिर तबो कवनो ठिकाना ना रहे. एगो गाछ में केतना फल लागी, एक फल केतना में बिकाई आउर एक टन केतना में बिकाई, एह सभ के अंदाजा ना लगावल जा सके. बाकिर, मौसम सुरु भइला, चाहे मौसम आपन चरम पर रहला के हिसाब से एगो कटहर 150 से 500 के बीच बिकाला. एकरा अलावे कटहर के दाम एकर वजनो पर निर्भर करेला. जादे करके पनरुती में एगो कटहर 8 से 15 किलो के होखेला. जबकि कुछ त 50-50 किलो के भी आवेला. एकाध 80 किलो तकले भारी होखेला. अप्रिल 2022 में एक टन कटहर के दाम 30,000 रुपइया रहे. आमतौर पर (हरमेसा ना) एक टन में सौ ठो कटहर आ जाला.

कटहर के गाछ के लकड़ी भी मूल्यवान होखेला. रामासामी बतावत बाड़न कि 40 बरिस पुरान एगो गाछ के “लकड़ी 40,000 में बिकाला.” उनकर कहनाम बा कि कटहर के लकड़ी उत्तम होखेला. ई मजबूत त होखबे करेला, एकरा में पानियो कम लागेला. ई “सागवान से भी बरियार होखेला.” नीमन लकड़ी खातिर एगो गाछ के छव फीट ऊंच, मोट (ऊ आपन हाथ के दू फीट तक फइला के देखावत बाड़न) होखे के चाहीं. ई भी देखे पड़ी कि ओकरा में कुछ गड़बड़ी त नइखे. जदि टहनी सब नीमन बा, त ओकरा से लकड़ी बनावल जा सकेला. रामासामी आपन पाछू एगो खिड़की देखावत कहलन, “जइसे कि ई.” एकर  लकड़ी आउर महंगा बिकाला.

उनकर पुरखा लोग के घर के चौखट कटहर के गाछ के लकड़ी से बनल रहे. हमनी के ठीक पाछू नक्काशीदार दरवाजा उनकरे खेत से निकलल सागवान के लकड़ी से बनल बा. ई उनकर नयका घर बा, जहंवा ऊ लोग अब रहेला. ऊ बतइलन, “पुरान दरवाजा भीतरी ओरी बा.” तनी देर बा ऊ हमनी के दू ठो मोट-मोट दरवाजा देखइलन, जे समय के साथे कमजोर हो गइल रहे. ओह में खरोंच आ गइल रहे, त कुछ हिस्सा नोकीला हो गइल रहे. ई सभ उनकर घर के पिछला हिस्सा में रखल रहे. ऊ तनी गर्व से बतइलन, “ई सभ 175 बरिस पुरान बा.”

एकरा बाद ऊ हमरा एगो पुरान कंजीरा (कटहर के लकड़ी से बनल एक तरह के बाजा) देखइलन. ओकरा किनारे-किनारे झाल लागल रहे. एह में सिलिंडर जइसन मुंह ओरी उडुंबु तोल (गोह छिपकली के खाल) लागल रहेला. कटहर के लकड़ी से मृदंग आ वीणा जइसन दोसर संगीत वाद्ययंत्र सभ बनावल जाला. रामासामी आपन हाथ में कंजीरा लेत कहले, “ई पुरान वाला हमार बाऊजी के समय के बा.” झाल से मीठ आवाज निकलत रहे.

गाछ आउर फसल के बारे में गहिर जानकारी रखे के अलावे रामासामी सिक्का सभ के भी जानकार (मुद्राशास्त्री) बाड़न. उनका सिक्का जमा करे के शौक बा. ऊ आपन संगे लाइल किताब देखइलन, जेकरा में सभे के साल आउर दुर्लभता के हिसाब से सजावल रहे. ऊ वइसन सभ सिक्का भी देखइलन जेकरा खातिर लोग 65,000 आ 85,000 रुपइया तक खरचा करे के तइयार बा. ऊ तनी मुस्कात कहले, “बाकिर हम एकरा ना बेचनी.” जब हम ऊ सिक्का सभ के बड़ाई करत रहीं, उहे घरिया उनकर घरवाली हमरा से जलपान खातिर पूछली. फेरु तस्तरी में नमकीन काजू आ एलंद पड़म (भारतीय बेर) परस के आइल. सभ कुछ बहुते स्वादिष्ट, नमकीन आउर खट्टा रहे. बातचीत के तरहा जलपान भी नीमन रहे.

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कटहर तुड़े के काम बहुते भारी आ जटिल होखेला. एगो बड़ कटहर तक पहुंचे खातिर खेतिहर मजूर गाछ पर चढ़ रहल बा

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कटहर जब तइयार हो जाला आउर बहुते ऊंचाई पर फरल रहेला, त ओकरा काट के रसड़ी के सहारे धीरे-धीरे नीचे उतारल जाला

ऊ आपन एगो परिचित के आयिरमकाची पट्टा पर देले बाड़न. ऊ हंसत कहलन, “बाकिर जदि हम कुछ कटहर घर खातिर रख लीहीं, त उनका शिकायत ना होखी. चाहे त समूचा भी रखल जा सकत बा.” अइसे त, एकरा आयिरमकाची (एक हजार फल वाला) कहल जाला, बाकिर साल में एकरा से एक तिहाई आ पांचवा हिस्सा के बीच फल होखेला. ई नामी गाछ बा. एकरा पर फले वाला कटहर के मांग बहुते बा. एह गाछ के कवनो मध्यम आकार के कटहर में मोटा-मोटी दू सौ कोवा निकली. रामासामी बहुते जतन से बतइलन, “कोवा के स्वाद दिव्य होखेला.”

आमतौर पर जवन गाछ जेतने पुरान होई, ओकर टहनी सभ ओतने मोट होई आउर ओह पर ओतने जादे फल लागी. रामासामी कहेलन, “गाछ के देख-रेख करे वाला जानेला कि कवनो टहनी पर जादे से जादे केतना फल लागे के चाहीं ताकि फल बड़ा आवे. कवनो नया गाछ पर जादे फल लागल बा, त ऊ सभ छोटे रही,” ऊ ओकर साइज बतावे खातिर आपन हाथ के लगे लावत बाड़न, जइसे कि ऊ कवनो नरियर पकड़ले होखस. जादे करके किसान लोग कटहर उगावे खातिर दवाई छिड़केला. रामासामी बतावेलन कि सौ फीसदी जैविक तरीका से कटहर उगावल असंभव त नइखे, बाकिर बहुते भारी काम बा.

ऊ हंसत कहेलन, “जदि एगो बड़ गाछ पर कम गिनती में कहटर उगे खातिर छोड़ल जाव, त एक-एक कटहर खूब बड़ आउर भारी फरी. बाकिर एकरा में जादे खतरा बा. कटहर में कीड़ा लाग सकेला, ऊ बरसात में खराब हो सकेला, चाहे आंधी-तूफान में गिर सकेला. हमनी के जादे लालच ना करे के चाहीं.”

ऊ कटहर पर छपल एगो किताब खोलके ओकर फोटो सभ देखावे लगलन. “देखीं, कइसे फल सभ के बचा के रखल जाला... फल के टिका के रखे खातिर टोकरी बनावल जाला, आउर ओकरा रसड़ी के मदद से टहनी से बांध देवल जाला. एह तरीका से, फल टिकल रहेला, गिरे ना. जब एकरा काटल जाला, त रसड़ी के मदद से धीरे-धीरे नीचे उतारल जाला. आउर एह तरीका से उठावल जाला.” एगो फोटो में दू गो आदमी एगो बिसाल कटहर के उठइले रहे. कहटर एगो आदमी जेतना लंबा-चौड़ा रहे. रामासामी रोज आपन गाछ सभ के निहारेलन आउर देखत रहेलन कहूं कवनो टहनी कमजोर त ना हो गइल बा. “हम तुरंते रसड़ी के टोकरी तइयार करके ओकरा कटहर के नीचे बांध देवेनी.”

केतना बेरा त बहुते संभार के रखला के बादो कटहर टूटके भूइंया पर गिर जाला. ओकरा से जनावर के चारा तइयार कइल जाला. “देखनी ऊ कटहर सभ? सभ नीचे गिर गइल रहे. एकरा अब केहू ना कीनी. हमार गाय आ बकरी सभ एकरा मजा से खाई.” करुवाडु बेचे वाला मेहरारू लोग के कुछ मछरी बिका गइल बा. लोहा के तराजू पर तउल के मछरी सभ चौका में ले जावल जात बा. एकरा बाद, मेहरारू लोग के डोसा परसल जात बा. ऊ लोग खात-खात हमनी के बात सुन रहल बा आउर बीच-बीच में बतियावे लागत बा. ऊ लोग रामासामी से कहलक, “हमनी के एगो कटहर दे दीहीं ना. लरिकन सभ खाई.” रामासामी जवाब देत बाड़न, “अगिला महीना आके ले जइह.”

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रामासामी के बगइचा में घुसे वाला जगह पर एगो पड़ोसी किसान आपन कटहर सभ के एक लाइन से रखले बाड़न

रामासामी समझइलन कि कइसे एक बेरा कटहर सभ तुड़ा जाला, त ओकरा मंडी में कमीशन एजेंट लगे भेज देवल जाला. “दोकान पर कवनो ग्राहक आवेला, त ऊ लोग हमनी के फोन करेला आउर ओकर दाम पूछेला. हमनी के राजी भइला पर ऊ लोग ओकरा बेचके हमनी के पइसा देवेला. प्रति हजार रुपइया के बिक्री पर एजेंट दुनो (उनका से आ ग्राहक से) से 50, चाहे 100 रुपइया कमीशन लेवेला.” रामासामी खुसी-खुसी आपन आमदनी के 5 से 10 प्रतिशत हिस्सा ओह लोग के देवे के तइयार रहेलन. काहेकि एकरा से “किसान लोग कइएक तरह के झंझट से बच जाला. हमनी के कवनो ग्राहक खातिर उहंवा ठाड़ होके इंतिजारी ना करे पड़े. कबो, ई सब में एक दिन से जादे लाग जाला. हमनी लगे दोसर काम नइखे का? पूरा दिन पनरुतिए में त ना बिता सकीं!”

रामासामी बतइलन कि दू दसक पहिले ले जिला में दोसरो फसल सब उगावल जात रहे. “हमनी खूब टैपिओका (कसावा) आ मूंगफली उगावत रहीं. जइसे-जइसे काजू के कारखाना लागत चल गइल, मजूर लोग के काम मिले में दिक्कत हो गइल. एहि चलते बहुते किसान लोग कटहर के खेती करे लागल. कहटर उगावे में मजूर के कम दिन काम करे पड़ेला.” ऊ सूखल मछरी बेचे वाला दुनो मेहरारू ओरी देखावत कहलन, “आउर एहि चलते ई दुनो लोग इहंवा काम करे खातिर बहुते दूर से आवेला. दुनो लोग दोसर गांव से बा.”

अइसे, ऊ बतइलन कि अब किसान लोग कटहरो के खेती छोड़े लागल बा. रामासामी के पांच एकड़ जमीन पर कोई 150 गाछ लागल बा. इहे जमीन पर काजू, आम आ इमली भी लागल बा. ऊ बतइलन, “हमनी कटहर आ काजू के गाछ पट्टा पर देले बानी. जादे करके हमनी इमली के कटाई करिला.” ऊ पला मरम यानी कटहर के गाछ के गिनती कम करे के सोचले बाड़न. “तूफान चलते हमरा अइसन ख्याल आइल. थाने चक्रवात आइल रहे, त हमार मोटा-मोटी दू सौ गाछ गिर गइल रहे. हमनी के सभे हटावे पड़ल... जादे करके इहे इलाका में गिरल रहे. अब हमनी कटहर के जगहा काजू उगावत बानी.”

अइसनो नइखे कि तूफान में काजू आउर दोसर फसल सब जियान ना होखे. ऊ कहेलन, “बाकिर इ सब लगावे के बाद, पहिलके साल फसल तइयार होखे लागेला. काजू के जादे ध्यान ना देवे पड़े. कडलूर जिला में तूफान सभ बहुते आवत रहेला. हर दस साल में हमनी के एगो बड़ तूफान झेले पड़ेला.” ऊ मुंडी हिलावत आउर हाथ से इशारा करत आपन नुकसान के बारे में बतावत बाड़न, “कटहर के जवन गाछ सभ 15 बरिस से जादे के बा, ओह में सबले जादे फल लागेला. आउर उहे गाछ तूफान में सबले पहिले गिर जाला. हमनी के बहुते अफसोस होखेला.”

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बावां: पछिला बरिस रामासामी कटहर पर लिखल बहुते साहित्य सब जुटइलन.  एकरा में कुछ किताब दुर्लभो बा. दहिना: मुद्राशास्त्री होखे के नाते उनका लगे सिक्का सब के लाजवाब संग्रह बा

कडलूर के डिस्ट्रिक्ट डायग्नोस्टिक रिपोर्ट से हमनी के तूफान आवे के कारण पता चलेला . एकरा अनुसार: “लमहर-लमहर तट होखे के चलते ई जिला चक्रवाती तूफान आउर मूसलाधार बरसात के लिहाज से बहुते संवेदनशील बा. एहि चलते बाढ़ो के स्थिति बन सकत बा.”

सन् 2012 में अखबार में छपल रिपोर्ट से थाने चक्रवात से भइल तबाही के अंदाजा लगावल जा सकेला. एह तूफान में 11 दिसंबर, 2011 के कडलूर जिला में बहुते बरबादी भइल. बिजनेस लाइन के हिसाब से, “तूफान चलते जिला भर के कटहर, आम, केला, नरियर, काजू आउर दोसर फसल के दू करोड़ से भी जादे गाछ जियान हो गइल.” रामासामी लोग से कहलन कि जेकरा लकड़ी चाहीं  आके ले जाए. “हमनी के पइसा ना चाहत रहे. गिरल गाछ के देख के मन छटपटाए लागत रहे. बहुते लोग आइल आउर घर के मरम्मत करे खातिर लकड़ी सभ ले गइल.”

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कटहर के बगइचा रामासामी के घर से तनिके दूर पड़ेला. पड़ोस के एगो किसान कटहर सब तुड़ के जमा कर रहल बा. ई सब देखके अइसन बुझात बा, जइसे बच्चा के खेले वाला ट्रेन के छोट-छोट डिब्बा रखल होखे. सभे कटहर बजार ले जाए वाला ट्रक के इंतजार में एक लाइन से सजा के रखल गइल बा. हमनी बगइचा में जइसहीं घुसनी, गरमी से राहत मिलल. हवा ठंडा लागे लागल.

रामासामी गाछ, पौधा, फल के बारे में लगातार बतियावत जात रहस. उनकर बगइचा के सैर जानकारी से भरपूर, बाकिर बहुते हद ले पिकनिक जइसन रहल. ऊ हमनी के बहुते चीज खियइलन: काजू के मोट-मोट, रसीला फल, शहद जेतना मीठ सेब आउर खट्टा-मीठा इमली के गूदा. एक साथे तीन ठो अलग-अलग स्वाद.

एकरा बाद हमनी के ऊ तेजपत्ता तुड़ के सूंघे खातिर देलन. फेरु पूछलन का हमनी पानी के स्वाद लेवे के चाहत बानी? जबले जवाब देतीं, ऊ जल्दी से खेत के एगो कोना में गइलन आउर मोटर चला देलन. एगो मोट पाइप से पानी निकले लागल. एकरा देखके अइसन लागल जइसे भरल दुपहरिया में हीरा जगमगाए लागल होखे. हमनी आपन हाथ से बोरवेल के पानी पिए लगनी. पानी मीठ त ना रहे, बाकिर ओह में स्वाद रहे. शहर के नल से आवे वाला क्लोरीन फेंटल पानी से एकदमे अलग. एगो बड़ मुस्कान संगे ऊ मोटर बंद कर देलन. हमनी के सैर अबही पूरा ना भइल रहे.

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मालिगमपट्टु गांव के आपन घर में रामासामी

अब हमनी आयिरमकाची से भेंट करे जात रहीं. एकरा जिला के सबले पुरान गाछ मानल जाला. ओकर वितान आश्चर्यजनक तरीका से बहुते बड़ आउर घना रहे. अइसे त लकड़ी से एकर उमिर के पता चलत रहे. ऊ कहूं से अइंठल रहे, त कहूं से खोखला हो गइल रहे. बाकिर नीचे एकर तना पर एतना कटहर लागल रहे, लागत रहे गाछ कटहर के कपड़ा पहिनले होखो. रामासामी बतइलन, “अगिला महीना ई बहुते भव्य देखाई दीही.”

बाग में बहुते बड़-बड़ गाछ रहे. ऊ हमनी के एगो दोसर कोना में ले गइलन आउर इसारा करत कहलन, “उहंवा 43 प्रतिशत ग्लूकोज (ग्लाइसेमिक इंडेक्स, यानी जीआई) वाला कटहर सब लागल बा.” जमीन पर गाछ के परछाईं सभ नाचत रहे, टहनी सब एक-दोसरा से रगड़ात रहे, चिरइया चहचहात रहे. उहंवा कवनो गाछ तरे आराम से ओठंग के लगे के नजारा देखे के बहुते मन करे लागल. बाकिर रामासामी अबही आउर दोसर-दोसर तरह के किसिम के बारे में बतावत जात रहस. सब बहुते दिलचस्प रहे. आम के ठीक उलट, जेकरा में नीलम आ बेंगलुरा जइसन किसिम के एकदम अलग स्वाद होखेला. आउर एकर नकल बहुते आसानी से तइयार कइल जा सकेला. बाकिर कटहर के किसिम सभ के नकल तइयार कइल कठिन होखेला.

“मान लीहीं हम कटहर के ओह गाछ के नकल (प्रोपोगेट) करे के चाहत बानी. एकरा खातिर हमरा बिया ना चाहीं. काहेकि एगो फल के भीतरी भलही सैंकड़न बिया होखे, बाकिर अइसन हो सकेला कि ओकरा में से एगो बिया भी मूल किसिम जइसन ना निकले! कारण? क्रॉस पोलिनेशन. एगो अलग गाछ के परागण दोसर गाछ के निषेचित कर सकत बा. आउर एहि चलते किसिम में बदलाव आ सकेला.”

ऊ बतइलन, “हमनी सीजन के सबले पहिल आ अंतिम फल चुनिला. जब हमनी के पता होखेला कि ओकर 200 फुट के दायरा में कवनो दोसर गाछ पर कटहर नइखे. आउर एकर इस्तेमाल खास करके बिया जुटावे में कइल जाला.” ना त किसान सोलई (फली) के मिठास आउर मजबूती वाला कटहर पावे खातिर कलम के सहारा लेवेला.

एकरा अलावे दोसरो कठिनाई सभ बा. दोसर-दोसर समय (45 से 55, चाहे 70 दिन) पर तुड़ल गइल कटहर के स्वादो दोसर-दोसर होखला. कटहर के खेती में भलही जादे मिहनत ना लागे, बाकिर ई कठिन जरूर बा. काहेकि कटहर जल्दी खराब हो जाला. रामासामी कहेलन, “हमनी के कोल्ड स्टोरेज के जरूरत बा.” मोटा-मोटी सभे किसान आ ब्यापारी लोग के इहे मांग बा. “तीन से पांच दिन, ओकरा से जादे ना. ओकरा बाद कटहर खराब होखे लागेला. हम काजू के फल सालो भर बाद बेच सकत बानी. बाकिर कटहर त एको हफ्ता ना टिके.”

आयरमकाची त जरूर खुस होई. आखिर ऊ 200 साल से आपन जगह पर ठाड़ बा...

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बावां: रामासामी के अलबम से आयिरमकाची के एगो पुरान फोटो. दहिना: रामासामी के बगइचा में कटहर से लदल उहे गाछ

एह रिसर्च स्टडी के बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विस्वविद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम 2020 के तहत अनुदान मिलल बा.

कवर फोटो: एम. पलानी कुमार

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Aparna Karthikeyan

Aparna Karthikeyan is an independent journalist, author and Senior Fellow, PARI. Her non-fiction book 'Nine Rupees an Hour' documents the disappearing livelihoods of Tamil Nadu. She has written five books for children. Aparna lives in Chennai with her family and dogs.

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Photographs : M. Palani Kumar

M. Palani Kumar is Staff Photographer at People's Archive of Rural India. He is interested in documenting the lives of working-class women and marginalised people. Palani has received the Amplify grant in 2021, and Samyak Drishti and Photo South Asia Grant in 2020. He received the first Dayanita Singh-PARI Documentary Photography Award in 2022. Palani was also the cinematographer of ‘Kakoos' (Toilet), a Tamil-language documentary exposing the practice of manual scavenging in Tamil Nadu.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought' and 'The Last Heroes: Foot Soldiers of Indian Freedom'.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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